ये कैसा बिहार है!

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बिहार एक राज्य है जो की भारत का एक अभिन्न अंग है। इसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखंड जो की बिहार से ही अलग हो कर बना है। पूर्व में बंगाल जिसे पश्चिम बंगाल भी कहते हैं यह भी पहले बिहार का ही अंग था। बिहार के पूर्व में उत्तर प्रदेश है। बिहार की राजधानी पटना है, जिसे पाटलिपुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बिहार की मुख्य भाषा भोजपुरी, मगही और मैथिली के अलावा कई अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं। बिहार में 38 जिले हैं।
वर्तमान बिहारः
बिहार का विकास मानो गंगा मैया में समा गया है। यहां पहले आप राज करिए, फिर हम करेंगे, फिर दोनों मिल के करेंगे यही चलता है। बिहार का विकास मानो सत्ता पर टिका हुआ है, बिहार में ऐसा नहीं है की विकास हुआ ही नहीं है। विकास हुआ है कुछ हद तक जैसे आप मेरा गांव ही ले लीजिए। मेरा गांव चकथत पूरब पंचायत में आता है। मेरी पंचायत में आपको सभी घर से नेता मिल जाएंगे। साथ में आपको बेरोजगार भी मिलेंगे। अभी कुछ गलियों की सड़क बन गई है। जो भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की बलि चढ़ गई है, मानो बिहार है तो भ्रष्टाचार भी है। बिहार में कई सरकारें आई और बड़े-बड़े वादे करके गईं। लेकिन बिहार भी रो रहा है इनको देख कर। बिहार को कभी किसी नेता ने लूटा, कभी बाढ़ ने। दोनों लकड़ी को खाने वाले कीड़े की तरह बिहार को खोखला बना रहे हैं। ऐसा नहीं है की सब नेता मंत्री ऐसे ही होते हैं। जैसे की बिहार में शराब बंद है, लेकिन आपको जहां चाहिए वहीं मिलेगी। होम डिलीवरी फ्री जो एक बहुत ही निंदा वाली बात है अगर बिहार में शराब बंद है तो यह आती कहां से है? सीमा कैसे पार हो जाती है?
दोनों सवाल गंभीर है जो हमारे राज्य के महामहिम नीतीश कुमार से पूछने का सबसे बड़ा सवाल कह सकते हैं। वैसे भी पलटू चाचा को कुर्सी बचाने से फुर्सत कहा है जो देंगे जवाब। यह जो नेता शब्द जो होता है न बहुत ही खराब होता है। यह लोग लोगों को जाति के नाम पर, धर्म के नाम,बेरोजगारी के नाम पर लोगों को लड़वाते रहते हैं और बिहार के लोग लड़ते भी हैं और साथ भी रहते हैं। बिहार की शिक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है। बच्चे यहां पढ़ने नहीं खाने आते है, जिस से बच्चों को पढ़ने से ज्यादा खाने का मेनू याद रहता है। जिसमें भी शिक्षक भी भ्रष्ट हो गए हैं। यह बच्चों को देने वाला खाना शायद चूहा खाता है की कोई और यह तो चूहा ही बताएगा। ऐसा भी नहीं है की कोई शिक्षक अच्छा नहीं होता और सब बच्चे खाने ही आते हैं।
जहां बच्चे पढ़ना चाहते हैं वहां शिक्षक की कमी है, जैसे की आज अगर बिहार के विश्वविद्यालय और महाविद्यालय, स्थिति सही होती तो शायद ही मैं यहां होता। शिक्षक को पलटू चाचा शराब खोजने में लगा देते हैं, तो पढ़ाई कहां से होगी। हमारी यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है। इसने फसल के साथ साथ कई वीर ऐसे दिए हैं जो अपने देश के लिए कुर्बान हुए, ऐसे कई नेता दिए जिन्होंने अपनी इस मिट्टी का नाम अपने देश नहीं पूरे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय किया।
बहुत-सी कमी है जो कि बताते-बताते शायद मैं खुद शर्मिंदा हो जाऊं।
फिर भी कहते हैं आइए आपका बिहार में स्वागत है। आइए हमारे राज्य को पहचानिए की कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया। आइए और बताइए मुझे की मैं गलत हूं।

निशांत कुमार
(लेखक एफ.आई.एम.टी कालेज, गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में पत्रकारिता एवं जन-सचांर कोर्स- प्रथम वर्ष के छात्र हैं।)

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