‘प्रवासी साहित्य’ विस्थापन का ‘साहित्य’

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नई दिल्ली, 9 जनवरी। प्रवासी साहित्य एक विस्थापन का साहित्य है। ये उद्गार हैं, वेबिनार के अध्यक्ष प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ विमलेशकांति वर्मा के।
वेबिनार के अतिथि वक्ता त्रिनिडाड-टुबैगो में भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा एवं संस्कृति) के पद पर कार्यरत शिव कुमार निगम फीजी से जुड़े। उन्होंने कहा कि भारतवंशियों द्वारा लिखा गया साहित्य द्वंद्व मन की उपज है। प्रवासी साहित्य एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया है।
उत्थान फाउंडेशन की निदेशिका व वेबिनार की संचालिका अरूणा घवाना ने कहा कि प्रवासी भारतीयों का हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान को कम कर नहीं आंका जा सकता।

यूके से साहित्यकार एवं संपादिका शैल अग्रवाल ने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीयों के लिए टेम्स कभी गंगा नहीं बन सकती। कनाडा की ‘वसुधा’ पत्रिका की संपादिका डॉ. स्नेह ठाकुर ने कहा कि भारतीय चाहे देश में रहे या विदेश में संस्कार व संस्कृति कभी नहीं छोड़ते।
यूएसए से रूट्स टू हिन्दी की संस्थापिका शुभ्रा ओझा ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति देते हुए कहा कि हिन्दी हमारी मां है और हम प्रवासी आज भी उसे वही मान-सम्मान देते हैं।
स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे, पोलैंड से डॉ संतोष तिवारी और दक्षिण कोरिया से अजय निबांळकर ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति के माध्यम से साहित्य में भारत दर्शन कराया।
स्पेन से पूजा ने रामायण के शबरी के बेर प्रसंग की भावपूर्ण प्रस्तुति कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
चीन के क्वान्ग्तोंग विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ विवेक त्रिपाठी ने कहा कि भारत और चीन का संबध पुराना है। वहाँ पर हिन्दी और प्रवासी साहित्य को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भी देखा जाना चाहिए।

वेबिनार के सह-आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि जूम मीट पर आयोजित हुए इस वेबिनार में ‘प्रवासी साहित्य में झलकता भारत’- विषय पर चर्चा, संस्मरण एवं काव्य पाठ किया गया। जिससे प्रवासी साहित्य की व्यापकता देखी जा सके। उन्होंने बताया कि 11 देश के वक्ताओं ने इस वेबिनार में भाग लिया।

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