प्रेमचंद ने त्रासदीपूर्ण संवेदनाओं को दी कलम

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नई दिल्ली, 31 जुलाई। प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में आज उत्थान फ़ाउंडेशन द्वारका की ओर से अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। सह-आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि वेबिनार में ‘प्रेमचंद साहित्य के विविध आयाम और व्यापकता’- विषय पर चर्चा हुई। खासबात यह थी कि प्रवासी भारतीयों के अलावा विदेशी गैर हिन्दी मेहमानों ने भी प्रेमचंद पर अपने वक्तव्य दिए। भारत से इतर 11 देशों के वक्ताओं ने इस वेबिनार में भाग लिया।
उत्थान फ़ाउंडेशन की संचालिका अरूणा घवाना ने वेबिनार की शुरुआत करते हुए आज की चर्चा के विषय को सबके सामने प्रस्तुत किया। आयोजिका एवं संचालिका अरूणा घवाना ने प्रेमचंद और सिनेमा पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि प्रेमचंद ने सिनेमा को तो छोड़ दिया था पर सिनेमा ने प्रेमचंद के साहित्य को कभी नहीं छोड़ा।

जूम मीट पर आयोजित हुए इस वेबिनार की मुख्य अतिथि कनाडा से डॉ स्नेह ठाकुर ने ‘नमक का दारोगा’ कहानी का जिक्र करते हुए चरित्र चित्रण किया। नीदरलैंड्स से जानेमाने भाषाविद प्रोफ़ेसर मोहन कांत गौतम अतिथि वक्ता ने कहा कि प्रेमचंद एक समाज वैज्ञानिक थे। भारत को समझने के लिए प्रेमचंद के साहित्य को समझना जरूरी है। यूके से साहित्यकार एवं संपादिका शैल अग्रवाल ने प्रेमचंद पर गांधी जी का प्रभाव था। यूएसए से “अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह” की संस्थापिका डॉ मीरा सिंह ने प्रेमचंद साहित्य की पूरी यात्रा कराई।
फ़ीजी से फीजी सरकार के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार डॉ बलराम पंडित ने प्रेमचंद साहित्य में मनोविज्ञान पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी कहानियाँ स्वयं मनोचिकित्सक का काम करती हैं। श्रीलंका से हिंदी शिक्षिका सुभाषिनी रत्नायके ने ‘‘प्रेमचंद के कथा साहित्य में संवेदनाएं” विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। सूरीनाम से हिन्दी शिक्षिका लैला लालाराम ने प्रेमचंद के महान उपन्यास गोदान पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद को पढ़ते हुए उन्हें सूरीनाम में भारतवंशियों के साथ होने वाली त्रासदी याद हो आई।

इसके अतिरिक्त पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफ़ेसर शिवकुमार सिंह ने बतौर भाषा विज्ञानी प्रेमचंद की कहानियाँ और हिन्दी शिक्षण पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि प्रेमचंद की कहानियों के माध्यम से ही हिन्दी शिक्षण सरल हो जाता है। उज्बेकिस्तान के ताशकंद राजकीय प्राच्य विश्वविद्यालय के अनुवाद विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉक्टर नीलूफर खोजाएवा ने प्रेमचंद की कहानियों का उज्बेक भाषा में अनुवाद के दौरान आई कठिनाइयों से रुबरू करवाया। पोलैंड से मैटीरियल साइंस के वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार ने कहा कि तुलसीदास की तरह स्वांतः सुखाय के लिए लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य अद्वितीय है। साथ ही काव्य पाठ किया।

प्रेमचंद जयंती पर आयोजित होगा अंतरराष्ट्रीय वेबिनार

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