सीमांतः भाजपा का चुनावी डंका

279

2023 में भारत के जिन नौ राज्यों में चुनाव होने हैं, उनका डंका बज गया है। उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों- त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में अगले माह चुनाव होनेवाले हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा स्वयं अपने दम पर सत्तारूढ़ नहीं है लेकिन तीनों में वह सत्तारूढ़ गठबंधन की सदस्य है। तीनों राज्यों की 60-60 विधानसभा सीटों पर फरवरी में चुनाव होने हैं। इन 60 सीटों में से 59 सीटें नगालैंड में, 55 मेघालय में और 20 त्रिपुरा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इन राज्यों में कुल मतदाताओं की संख्या सिर्फ 6 लाख 28 हजार है लेकिन शेष राज्यों में होनेवाले चुनाव भी इन राज्यों के चुनाव परिणामों से कुछ न कुछ प्रभावित जरूर होंगे। भाजपा की मन्शा है कि जैसे उत्तर भारत के राज्यों और केंद्र में भाजपा का नगाड़ा बज रहा है, वैसे ही सीमांत के इन प्रांतों में भी भाजपा का ध्वज फहराए। इसीलिए भाजपा के चोटी के नेता कई बार इस दूर-दराज के इलाके में अपना प्रभाव जमाने के लिए जाते रहे हैं। इन तीनों राज्यों की गठबंधन सरकारों में शामिल हर बड़े दल की इच्छा है कि इस बार वह स्पष्ट बहुमत प्राप्त करे और अकेला ही सत्तारूढ़ हो जाए। जो भाजपा का लक्ष्य है, वह ही बाकी सभी का लक्ष्य है। जाहिर है कि वे दल भाजपा के मुकाबले ज्यादा मजबूत हैं। उनका जनाधार काफी बड़ा है लेकिन इन सीमांत राज्यों की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति यह रही है कि केंद्र में जो भी सरकार बने, वे उसके रंग में रंग जाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वे अपनी अर्थ-व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार की दया पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि इन सारे स्थानीय दलों के नेता टूट-फूटकर भाजपा में शामिल हो जाएं और वहां भाजपा की सरकारें बन जाएं। भाजपा इस लक्ष्य को पाने पर इतनी आमादा है कि प्रधानमंत्री ने अपने पिछले पार्टी-अधिवेशन में मुसलमानों और ईसाइयों के भले की बात उठाई है। गोमांस-भक्षण पर भी संघ और भाजपा ने कड़ा रूख नहीं अपनाया है। ईसाई मतदाता इस इलाके में बहुत ज्यादा हैं। वैसे इन राज्यों में यदि सभी सरकारें भाजपा की बन गईं तो यह भरोसा नहीं है कि शेष राज्यों में भी उसी की सरकारें बनेंगी, क्योंकि हर राज्य के अपने-अपने राजनीतिक समीकरण हैं। तेलंगाना में हुए विशाल जन-प्रदर्शन में कम्युनिस्ट, समाजवादी और आप पार्टियों के नेताओं ने विरोधी गठबंधन का बिगुल काफी जोर से बजाया है लेकिन इस गठबंधन से कांग्रेस, ममता बनर्जी, नीतीशकुमार, कुमारस्वामी जैसे विपक्षी नेता अभी भी बाहर हैं। यदि यही हाल जारी रहा तो भाजपा का पाया अगले चुनावों में भी मजबूत बनकर उभरेगा।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

‘पाकिस्तान को एक मोदी चाहिए’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here