महाराष्ट्रः हिंदुत्व के लिए अच्छे संकेत नहीं

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महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दिनों से जो सियासी ड्रामा चल रहा है, वो हिंदुत्व के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इस सारे घटनाक्रम ने अपने जन्मकाल से हिंदुत्व के लिए मुखर रही शिवसेना के अस्तित्व पर ही संकट के बादल गहरा दिए हैं। इस संकट के पीछे कोई और नहीं हिंदुत्व का झंडा लेकर सबसे आगे चलने वाली देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है। एकनाथ शिंदे के साथ अन्य शिवसेना के बागी विधायकों को गुजरात के बाद असम में पनाह देना और शिंदे को एकाएक मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन देना, भाजपा की एक बड़ी रणनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। परंतु इसका दूरगामी प्रभाव कहीं न कहीं हिंदुत्व की लड़ाई को कमजोर करेगा।
बाला साहेब ठाकरे ने भी कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि शिवसेना को उनका कोई कट्टर विरोधी दल नहीं, बल्कि उनके कंधे पर पैर रखकर महाराष्ट्र में खड़ा होने वाला दल ही खत्म करने की चाहत रखेगा। कभी महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे की कृपा की चाहत रखने वाली भाजपा राज्य में अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिए विरोधी दलों के गढ़ों का ढहाने की जगह शिवसेना को धाराशाही कर कहीं न कहीं एक हिंदुवादी दल को समाप्त करने में लगी है, जो कि हिंदुत्व के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जा सकते हैं।
राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि एकनाथ शिंदे कभी भी शिवसेना में उद्धव ठाकरे की जगह नहीं ले सकते। बाला साहेब ठाकरे के समय में विरोध कर राज ठाकरे ने महाराष्ट्र निर्माण सेना (मनसे) का गठन किया था, परंतु वे शिवसेना सुप्रीमो की जगह नहीं ले सके, जबकि वे ठाकरे परिवार से ही थे। एकनाथ शिंदे तो ठाकरे परिवार से भी नहीं है। भाजपा इसको अच्छी तरह से समझती है, इसलिए एकनाथ शिंदे के आगे मुख्यमंत्री पद सोने की थाली में परोस कर दे दिया, जबकि वो ये कार्य ढाई साल पहले भी कर सकती थी, जब शिवसेना भाजपा से मुख्यमंत्री पद की मांग कर रही थी।
भाजपा ने पिछले कुछ साल में पूरे देश में अपना जनाधार तेजी से बढ़ाया है। इस दौरान उसने ऐन-प्रकेरण कई पार्टियों के विधायकों, सांसदों और नेताओं को भी अपने खेमे में जोड़ा। भाजपा की आगे बढ़ने की रणनीति ने कहीं न कहीं हिंदुत्व के मुद्दे पर उससे भी कट्टर शिवसेना को भी महाराष्ट्र में अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया और भाजपा दिनप्रतिदिन बढ़ती गई। अच्छा तो ये होता भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कट्टर विरोधी दलों के क्षेत्रों में संेध लगाती। परंतु उसकी जगह उसने तो अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हिंदुत्ववादी पार्टी को ही गहरी चोट पहुंचा दी।
-सुनीता कुमारी

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