कावड़-यात्रा और महामारी

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file photo sourceL social media

आजकल हमारी न्यायपालिका को कार्यपालिका का काम करना पड़ रहा है। सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों का अंतिम फैसला अदालतें कर रही हैं। ऐसा ही एक बड़ा मामला कावड़-यात्रा का है। इस यात्रा में 3-4 करोड़ लोग भाग लेते हैं। कई प्रदेशों के लोग कंधे पर कावड़ रखकर लाते हैं और हरिद्वार से गंगाजल भरकर अपने-अपने घर ले जाते हैं। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस कावड़-यात्रा की अनुमति दे रखी है जबकि कुछ ही हफ्तों पहले कुंभ-मेले के वजह से लाखों लोगों को कोरोना का शिकार होना पड़ा था, ऐसा माना जाता है। उ.प्र. सरकार जनता की भावना का सम्मान करके यात्रा की इजाजत दे रही है, यह तो ठीक है लेकिन ऐसा सम्मान किस काम का है, जो लाखों-करोड़ों लोगों को मौत के मुहाने पर पहुंचा दे? एक तरफ प्रधानमंत्री पूर्वी सीमांत के प्रदेशों में बढ़ती महामारी पर चिंता प्रकट कर रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री यह खतरा मोल ले रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी कह रहे हैं कि महामारी के तीसरे आक्रमण की पूरी संभावनाएं हैं। इसके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर मेला जुटाने की क्या जरुरत है? गंगाजल आखिर किसलिए लोग अपने घर ले जाते हैं? जब लोग ही नहीं रहेंगे तो यह गंगाजल किस काम आएगा? उप्र प्रशासन आश्वस्त कर रहा है कि कावड़ियों की जांच और चिकित्सा वगैरह का पूरा इंतजाम उसके पास है। ऐसी घोषणाएं तो उत्तराखंड शासन ने कुंभ-मेले के समय भी की थीं लेकिन जो खबरें फूटकर आ रही हैं, वे बताती हैं कि वहां कितना जबर्दस्त फर्जीवाड़ा हुआ था। यों भी आम तौर से लोग लापरवाही का खूब परिचय दे रहे हैं। दिल्ली के बाजारों और पहाड़ों पर पहुंची भीड़ के चित्र देखकर आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि कोरोना-नियमों का कितना पालन हो रहा है।
उत्तराखंड में भी यद्यपि भाजपा की सरकार है लेकिन उसके नए मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने न सिर्फ हरिद्वार में प्रतिबंध लगा दिया है बल्कि विभिन्न राज्यों की सरकारों से भी अनुरोध किया है कि वे इस कावड़-यात्रा को रोकें। सर्वोच्च न्यायालय ने उप्र और केंद्र सरकार से पूछा है कि उन्होंने कुंभ-मेले की लापरवाही से कोई सबक क्यों नहीं सीखा? क्या उन्हें जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है? संक्रमित कावड़िए अगर अपने गांवों और शहरों में लौटेंगे तो क्या अन्य करोड़ों लोगों को वे महामारी के तीसरे हमले का शिकार नहीं बना देंगे? सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और उप्र के सरकारों से इस प्रश्न का तुरंत उत्तर मांगा है। आशा है कि दोनों सरकारें अदालत की चिंता का सम्मान करेंगी और इस कावड़-यात्रा को स्थगित कर देंगी। इस स्थगन का हिंदू वोट-बैंक पर कोई अनुचित प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि यात्रा जारी रही और महामारी फैल गई तो सरकार को लेने के देने पड़ जाएंगे।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनितिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)

हम सबका खून एक ही

 

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