अब मजहबी आरक्षण का बहाना

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image source: social media

पहले जातीय आरक्षण बढ़ाने की मांग उठी, अब धर्म याने मजहब के आधार पर भी आरक्षण की मांग होने लगी है। यह मांग हमारे मुसलमान, ईसाई और यहूदी नहीं कर रहे हैं। यह मांग रखी है राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने। यह एक सरकारी संगठन है और यह मांग उसने सिर्फ हवा में ही नहीं उछाल दी है बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में उसने एक याचिका भी ठोक दी है। अपनी मांग के समर्थन में उसने संविधान की धारा 46 का हवाला दिया है। यह धारा कहती है कि राज्य का कर्तव्य है कि वह कमजोर वर्गों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों को प्रोत्साहित करे। जरुर करे। वह कर भी रही है लेकिन यह जो शब्द ‘वर्ग’ है न, इसका घनघोर दुरुपयोग हो रहा है, हमारे देश में!
संविधान निर्माताओं ने कहीं भी जाति, मजहब या भाषा के आधार पर विशेष रियायतें या आरक्षण देने की बात नहीं कही है लेकिन जब संविधान बना तब यह पता ही नहीं था कि देश में कमजोर तबके के लोग कौन हैं और कितने हैं। इसीलिए सुविधा की दृष्टि से वर्गों को जातियों में बदल लिया गया। यदि किसी जाति को कमजोर मान लिया गया तो उसके बाहर होनेवाला व्यक्ति कितना ही गरीब, कितना ही असहाय, कितना ही अशिक्षित हो, उसे कमजोर वर्ग में नहीं गिना जाएगा। कोई अनुसूचित या पिछड़ा व्यक्ति जो मालदार और सुशिक्षित हो, वह भी आरक्षण के मजे लूट रहा है। यही लूट-पाट का काम जो पहले जात के नाम पर चल रहा था, अब वह मजहब के नाम पर चले, यह बिल्कुल राष्ट्रविरोधी काम है। आश्चर्य है कि कोई सरकारी आयोग इस तरह की मांग कैसे रख सकता है? इस आयोग का यह तर्क तो ठीक है कि जब जातीय आरक्षण हिंदुओं, सिखों और बौद्धों को दिया जा रहा है तो मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और जैनों आदि को क्यों नहीं दिया जाता है?
क्या उनमें जातियां नहीं है? लेकिन यहां भी वही बुनियादी सवाल उठ खड़ा होता है। इन मजहबों में जो मालदार और सुशिक्षित हैं, वे भी पदों और अवसरों की लूटमार में शामिल हो जाएंगे। उससे बड़ी चिंता यह है कि इस देश के भावनात्मक स्तर पर टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। जैसे आज जातिवाद के आगे हमारे सभी वामपंथी और दक्षिणपंथी अपनी नाक रगड़ते हैं, उससे भी ज्यादा उन्हें मजहबी शैतान के आगे अपनी दुम हिलानी होगी। मजहब के आधार का अंजाम हम 1947 में देख ही चुके हैं, अब आप भारत को संप्रदायों में बांटने की मांग क्यों कर रहे हैं? यदि हम भारत को सबल और संपन्न बना हुआ देखना चाहते हों तो कमजोर आदमी, जिस भी जाति या धर्म, संप्रदाय, भाषा या प्रदेश का हो, उसे विशेष सुविधाएं देने का इंतजाम हमें करना होगा। सैकड़ों सालों से चले आ रहे जातीय, मजहबी और भाषिक (अंग्रेजी) अत्याचारों से हमारी जनता को मुक्त करने का सही समय यही है। इसीलिए नौकरियों से आरक्षण का काला टीका हटाइए और कमजोर वर्गों को शिक्षा और चिकित्सा मुफ्त दीजिए और देखिए कि हमारे कमजोर वर्ग शीघ्र ही शक्तिशाली होते हैं या नहीं? यदि हमारे नेता साहसी और दृष्टिसंपन्न होते तो यह काम अब से 30-40 साल पहले ही हो जाता।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)

विश्व-संस्था में भारत को नया मौका

 

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