- वीर सावरकर और गांधी के संबंधों को लेकर बहस
- राजनाथ सिंह की टिप्पणी को लेकर उठ रहे सवाल
काला पानी यानी पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल की तीसरी मंजिल पर जिसमें वीर सावरकर को कड़े पहरे में रखा गया था। 1989-90 के दौरान पोर्ट ब्लेयर प्रवास के दौरान मैं उस सेल में कई बार गया। खुद को बंद कर बाहर से उस लोहे के भारी गेट को बंद कर लेता था। अपने को वीर सावरकर समझता। मेरे किशोर मन पर वीर सावरकर को बड़ा प्रभाव था जो आज भी धुंधला सा बरकरार है।
राजनाथ सिंह ने उदय माहुरकर और चिरायु पंडित द्वारा लिखित ‘वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन‘ नाम की किताब के विमोचन के समारोह में कहा, सावरकर के खिलाफ झूठ फैलाया गया। कहा गया कि उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने बार-बार दया याचिका दी, लेकिन सच्चाई ये है कि दया याचिका उन्होंने ख़ुद को माफ़ किए जाने के लिए नहीं दी थी, उनसे महात्मा गांधी ने कहा था कि दया याचिका दायर कीजिए. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने दया याचिका दी थी।
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने जो तर्क दिया कि महात्मा गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने दया याचिका दायर की थी, यह गले से उतर नहीं रहा है। इसका एक अहम कारण यह है कि 1996-97 में मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था। तब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने महात्मा गांधी द्वारा लिखे गये पत्रों के संकलन द क्लेक्टिव वर्क्स आफ महात्मा गांधी को डिजिटलाइजेशन का कार्य किया। इस प्रोजेक्ट के मुख्य सूत्रधार प्रख्यात पत्रकार राजेंद्र धस्माना थे और उनको मैं इस प्रोजेक्ट में मदद कर रहा था। 106 किताबों के इस संकलन गांधी जी के हजारों पत्र हैं। जोहनंबर्ग, नाटाल, प्रिटोरिया से लेकर उन्होंने जीवन की लगभग हर घटना का जिक्र इनमें किया है तो फिर वीर सावरकर की दया याचिका का जिक्र क्यों नहीं है?
दरअसल, भाजपा के मौजूदा नेता झूठा राष्ट्रवाद फैलाने में जुटे हैं। जनता को मुद्दों से भटकाने का काम लगातार जारी है। इतिहास को नये सिरे से लिखने की तैयारी हो रही है, संभवतः राजनाथ सिंह भी उसी की भूमिका तैयार कर रहे होंगे। सत्य तो इतिहासकार जानते होंगे? लेकिन इतिहास लिख कौन रहा है? यह बात विचारणीय है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]