या देवी सर्वभूतेषु…

887

आज दिनांक 7 अक्टूबर दिन गुरूवार से नवरात्रि प्रारंभ हो रही जो कि 14 अक्टूबर तक रहेगी। नवरात्रि में माता के 9 रूपों की पूजा अर्चना साधना की जाती है। इसलिए नवरात्रि के इस पर्व को नवदुर्गा पूजा भी कहते है। नवरात्रि का पर्व साधना और भक्ति का पर्व है।

आज प्रथम दिवस माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

नवरात्रि मे क्या करे-
1. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल से स्नान कर घर के किसी साफ स्थान या पूजा घर में मिट्टी की बेदी बनाये और उसमें जौ और गेहूं मिलाकर बोयें। पास में कलश स्थापना कर करें और गणेश जी स्थापना कर पूजन करें।
2. देवी माता की स्थापना कर पूजा-अर्चना धूप, दीप, पुष्प, इत्रादि से पूजन करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। इस दिन घट स्थापना व कलश स्थापना का भी महत्व है।
3. इन नौ दिनों में माता के मंत्र –
ऐं ह्रीं क्ली चामुण्डायै विच्चे नमः
का जप जितना हो सकते करना चाहिए लेकिन प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में ही जप करना चाहिए। साथ ही दुर्गासप्तसती का पाठ भी करना चाहिए।
4. प्रतिदिन माता जी की आरती सुबह और शाम को करनी चाहिए।
5. अंतिम दिन विधिवत हवन पूजन व कन्या भोजन करा कर पूजा का समापन करना चाहिए।

कौन-सी साधना करनी चाहिए-
नवरात्रि में तांत्रिक व मांत्रिक दोनों ही प्रकार की साधनाएं की जाती है। जहां सामान्य गृहस्थ जन माता के सौम्य रूप की पूजा अर्चना करता है वहीं साधक, सन्यासी जन माता के उग्र रूप की पूजा अर्चना कर माता से शक्ति प्राप्त करता है।

तांत्रिक साधनाएं –
काली, तारा, त्रिपुर सुन्दरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बग्लामुखी, मातंगी व कमला देवी की पूजा की जाती है।

कौन करे तांत्रिक साधना –
सामान्य गृहस्थ माता की सौम्य स्वरूप की पूजा करें। संन्यासी जन, साधक वर्ग को ही उग्र साधना करनी चाहिए। बिना गुरू के किसी भी प्रकार की उग्र साधना को नहीं करना चाहिए इससे हित की जगह अहित होने का भय रहता है। किताबों को देखकर अध्ययन नहीं करना चाहिए। योग्य गुरू के सानिध्य या मार्गदर्शन में ही साधना करे।

साधना में सावधानी:
1. साधक 9 दिन तक साधना के संकल्प लेकर ही साधना करे।
2. सर्व प्रथम गणेश पूजन के पश्चात गुरू पूजन करना चाहिए फिर जिस देवी का दिन हो उनकी पूजा करनी चाहिए।
3. साधना या संकल्प बीच में नहीं तोडना चाहिए।
4. मन में बुरे विचारों का चिन्तन व मनन नहीं करना चाहिए।
5. गलत लोगों की संगति से बचना चाहिए।
6. छल-कपट अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
7. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
8. यदि कही बिमार या जरूरी संकट यात्रा की आवश्यकता पड जाती है तो माता से क्षमा याचना कर उपवास तोड सकते है इससे क्षम्य होता है।
9. स्त्रियां रजस्वला पीरेड में साधना रोक सकती है।
10. पहले तो जानबूझ कर गलती नहीं करना चाहिए। यदि साधना में किसी भी प्रकार की गलती हो जाय तो माता क्रोधित हो सकती है। गलती हो जाने पर माता से क्षमा याचना कर लेना चाहिए।
11. सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, तामसिक भोजन से दूरी बना कर रखना चाहिए।
– स्वामी श्रेयानन्द (सनातन साधक परिवार) मो. 9752626564

हरिओम महाराज के सानिध्य में भव्य महाआरती, सैकड़ों भक्त हुए शामिल

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here