समाज में आपसी-भाईचारे, मेल-मिलाप, कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है रामलीला

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लेखः एस.एस.डोगरा
पुरुषोतम भगवान राम का नाम ही एक ऐसा व्यक्तित्व का आइना है जिसे हर व्यक्ति को अनुसरण करना चाहिए पौराणिक ग्रन्थ रामायण में राम एक ऐसा चरित्र है जिसने अपने जीवन काल में पहले पुत्र, भाई, पति, पिता एवं अयोध्या के शासक के रूप में प्रजा के प्रति आदर्श जीवन जिया। इन्हीं सद्गुणों की बदौलत ही, भगवान राम को देश-विदेश में बड़ी श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है। उन्ही के व्यक्तित्व को लेकर उन पर बायोपिक बोले तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी-जगह जगह रामलीला मंचन किया जाता है।
रामानंद सागर ने तो उनपर “रामायण” नामक टीवी सीरियल बना डाला था और उस सीरियल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय वह सीरियल टीवी पर प्रसारित होता था तो लोग अपने सारे जरूरी काम एवं व्यस्तता छोड़कर इस सीरियल को देखने के लिए टीवी से चिपक जाया करते थे। इन दिनों यानि नवरात्रों में अक्सर हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी रामलीलाओं का मंचन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। जहां तक इस रामलीला के मंचन की बात की जाए तो अधिकतर रामलीला आयोजकों का मानना है कि आज समाज में भगवान राम जैसे आज्ञा-पालक पुत्र, भाई, पति, एवं आदर्श शासक के संस्कारों को जिंदा रखने के लिए रामलीला मंचन अत्यंत जरुरी है। रामलीला में आदर्श राम तथा अन्य चरित्रों से बहुत कुछ सीखने समझने को मिलता है। फिर चाहे लक्ष्मण की अपने भाई भगवान राम एवं सीता मैया के प्रति आदर हो या संकट मोचन भगवान हनुमान। अपने पति भगवान राम के प्रति अपार श्रद्धा का अनुपम उदाहरण है सीता-माता का बलिदान। प्रत्येक वर्ष, लगभग दस दिन तक चलने वाले रामलीला मंचन में सभी बड़े क्रमबद्धता के आधार पर प्रतिदिन अनेक चरित्रों द्वारा बड़े सुंदर ढंग से रामलीला को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
रामलीला, भगवान राम के पूरे जीवन की एक नाटकीय प्रस्तुति है, जो अपने युवा काल के राम के इतिहास से शुरू होती है और भगवान राम और रावण के बीच 10 दिन के युद्ध के साथ समाप्त होती है। महान हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, राम  लीला एक पुरानी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो हर साल 10 रात के लिए मंच पर मंचित होती है। लीला के अंत में आरती होती है। इस अवधि के दौरान एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है, ताकि हर कोई राम लीला का भरपूर आनंद ले सकें।
रामलीला की शुरुआत
रामलीला की ऐतिहासिकता पर नजर डाले तो एक किंवदति का संकेत है कि त्रेता युग में श्री रामचंद्र के वनागमनोपरांत अयोध्यावासियों ने चौदह वर्ष की वियोगावधि राम की बाल लीलाओं का अभिनय कर बिताई थी। तभी से इस परंपरा का प्रचलन हुआ। एक अन्य जनश्रुति से यह प्रमाणित होता है कि इसके आदि प्रवर्तक मेघा भगत थे जो काशी के कतुआपुर मुहल्ले में स्थित फुटहे हनुमान के निकट के निवासी माने जाते हैं। एक बार पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने इन्हें स्वप्न में दर्शन देकर लीला करने का आदेश दिया ताकि भक्त जनों को भगवान के चाक्षुष दर्शन हो सकें। इससे सत्प्रेरणा पाकर इन्होंने रामलीला संपन्न कराई। तत्परिणामस्वरूप ठीक भरत मिलाप के मंगल अवसर पर आराध्य देव ने अपनी झलक देकर इनकी कामना पूर्ण की। कुछ लोगों के मतानुसार रामलीला की अभिनय परंपरा के प्रतिष्ठापक गोस्वामी तुलसीदास हैं, इन्होंने हिंदी में जन मनोरंजनकारी नाटकों का अभाव पाकर इसका श्रीगणेश किया। इनकी प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी। सूत्रों के मुताबिक रामनगर वाराणसी में राम लीला एक महीने के लिए रामलीला मैदान पर विशाल मेले के साथ आयोजित की जाती है। दशहरा त्यौहार शरद नवरात्रों से शुरू होता है। विजयादशमी के दिन राम ने रावण को हरा दिया और मार डाला तो पूरी अयोध्या नगरी पटाखों और आतिशबाजी की आवाज से गूंज उठी। इस दिन हर कोई बुराई पर सच्चाई की जीत का आनंद लेता है और नृत्य करता है। रावण का भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाथ भी इस युद्ध में मारे गए। लंबे समय से युद्ध की जीत के बाद, राम घर आए जहां अभिषेक का आयोजन किया गया, ताकि अयोध्या नगरी में उनका स्वागत किया जा सके। राम को भगवान विष्णु के 7वें जीवित अवतार के रूप में माना जाता है। पूरी रामायण भगवान राम के साथ उनकी धर्मपत्नी और भाई के इतिहास पर आधारित है। भारतीय संस्कृति में राम लीला का अधिक महत्व है। भारत में अधिकतर स्थानों पर, रामलीला के रामायण, रामचरितमानस के अवधियों के संस्करण में आयोजित किया गया था। दशहरे के दौरान रामलीला ने लोगों के वैश्विक ध्यान को आकर्षित किया। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन रामलीला का मंचन तुलसीदास के अनुयायी मेघा भगत द्वारा आयोजित किया गया था।
मुगल सम्राट अकबर ने भी अपनी राजशाही के दौरान इसका मंचन देखा था और वह बहुत खुश हुए थे। आजकल उत्तर प्रदेश में कई क्षेत्रीय रीति-रिवाजों के अनुसार रामलीला का मंचन विभिन्न शैलियों में किया जाता है। सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख रामलीला मेला राजा काशी नरेश के किले में रामनगर वाराणसी में आयोजित किया जाता है। विशेष रूप से रामलीला को चित्रकूट में पांच वर्ष के लिए उत्सुक भक्तों द्वारा सालाना किया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि रामलीला मेला का पारंपरिक मंचन रामनगर बनारस (काशी नरेश का किला) गंगा नदी के तट पर स्थित है जिसे वर्ष 1830 में काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह द्वारा शुरू किया गया था। जिसकी वजह से ही इसे रामनगर और वाराणसी के सभी क्षेत्रों और वाराणसी के आस-पास के इलाकों में प्रसिद्धि मिली। मेले तथा रामलीला को देखने के लिए यहां बहुसंख्या में तीर्थयात्री आते हैं। पूरा रामनगर शहर अशोक वाटिका, पंचवटी, जनकपुरी, लंका आदि के लिए विभिन्न दृश्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सेट के रूप में कार्य करता है। रामनगर के स्थानीय अभिनेता रामायण के विभिन्न पात्रों की महत्वपूर्ण भूमिकाओं राम, रावण, जानकी, हनुमान, लक्ष्मण, जटायू, दशरथ और जनक को जीते हैं। दशहरा त्यौहार काशी नरेश की परेड द्वारा रंगीन हाथी की चढ़ाई से शुरू किया जाता है। सैकड़ों पुजारी वहां रामचरितमानस के पाठ को बताने के लिए वहां रहते हैं।
रामलीला के प्रकार
रंगमंचीय दृष्टि से रामलीला तीन प्रकार की हैं – सचल लीला, अचल लीला तथा स्टेज लीला। काशी नगरी के चार स्थानों में अचल लीलाएं होती हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित रंगमंच की कई विशेषताओं में से एक यह भी है कि स्वाभाविकता, प्रभावोत्पादकता और मनोहरता की सृष्टि के लिए अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट लंका आदि अलग-अलग स्थान बना दिए गए थे और एक स्थान पर उसी से संबंधित सब लीलाएं दिखाई जाती थीं। यह ज्ञातव्य है कि रंगशाला खुली होती थी और पात्रों को संवाद जोड़ने-घटाने में स्वतंत्रता थी। इस तरह हिंदी रंगमंच की प्रतिष्ठा का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को और इनके कार्यक्षेत्र काशी को प्राप्त है। गोपीगंज आदि में भरतमिलाप के दिन विमान, इलाहाबाद के दशहरे के अवसर पर रामलीला के सिलसिले में जो विमान और चौकियां निकलती है, उनका दृश्य बड़ा भव्य होता है। जबकि रामायण के प्रथम रचियता महर्षि बाल्मीकि जी के आधार पर भी रामलीला मंचन किया जाता है।
रामलीला के कलाकार
लीला के पात्र, नवजात, किशोर, युवा, प्रौढ़ सभी होते हैं। पात्रों का चुनाव करते समय रावण की कायिक विराटता, सीता की प्रकृतिगत कोमलता और वाणीगत मृदुता, शूर्पणखा की शारीरिक लंबाई आदि पर विशेष ध्यान रखा जाता है। पहले रामलीला मंचन केवल ब्राह्मण जाति वाले ही किया करता थे, लेकिन आजकल हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के अनुयायी भी रामलीलाओं में अपनी-अपनी भूमिका निभाकर चर्चा में भी बने रहते हैं।
लीलाभिनेता चौपाइयों, दोहों को कंठस्थ किए रहते हैं और यथावसर कथोपकथनों में उपयोग कर देते हैं। इस कड़ी में आमतौर पर, शिव=पार्वती संवाद, नारद मोह, रावण तपस्या, पृथ्वी पर अत्याचार, राम-सीता जन्म, तकड़ा वध, अहिल्या उद्धार, ग्रुप वाटिका, सीता स्वंयवर, राम-राज तिलक घोषणा, मंत्र कैकेयी संवाद, राम वनवास, राम-निषादराज मिलन, खेवट प्रसंग, दशरथ मरण, भरत-कैकयी संवाद, राम-भरत मिलाप, पंचवटी प्रवेश, सुरपर्णखा प्रसंग, खर-दूषण वध, रावन-मारीच संवाद, सीता-हरण, जटायु वध, शबरी प्रसंग, हनुमान मिलन, राम-सुग्रीव मैत्री, बाली वध, रावण-सीता संवाद, हनुमान-सीता संवाद, रावण-हनुमान संवाद, लंका दहन, विभीषण शरणागत, सेतु बंधन, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मण मूर्छा, हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आना, रावण कुम्भकरण संवाद, कुम्भकरण विभीषण संवाद, कुम्भकरण वध, मेघनाथ-रावण संवाद, मेघनाथ वध, सुलोचना प्रसंग, अहिरावण शक्ति प्रदर्शन, अहिरावण वध और सबसे अंत में राम की शक्ति पूजा, रावण का अन्तर्द्वन्द, राम-रावण युद्ध, रावण वध, दशहरा महोत्सव-रावण, कुम्भकरण, मेघनाथ के विशाल पुतलों का दहन,भव्य आतिशबाजी, राम अयोध्या वापसी और भगवान राम के राजतिलक के द्रश्यों के माध्यम से पूरी रामलीला को मंचित किया जाता है।
लोकनायक राम की लीला भारत के अनेक प्रांतों-जिलों में होती है। भारत के अलावा मॉरीरिस, इंडोनेशिया, नेपाल, बाली, जावा, श्रीलंका आदि में प्राचीनकाल से यह किसी न किसी रूप में प्रचलित रही है।  श्रीकृष्ण की रासलीला का प्रधान केंद्र उनकी लीलाभूमि वृंदावन है। उसी तरह रामलीला का स्थल है काशी और अयोध्या। मिथिला, मथुरा, आगरा, अलीगढ़, एटा, इटावा, कानपुर, काशी आदि नगरों या क्षेत्रों में आश्विन माह में अवश्य ही आयोजित होती है लेकिन एक साथ जितनी लीलाएं नटराज की क्रीड़ाभूमि वाराणसी में होती है उतनी भारत में कहीं नहीं होती।
दिल्ली की मशहूर रामलीलाएं
दिल्ली में रामलीलाओं का इतिहास बहुत पुराना है। दिल्ली में सबसे पहली रामलीला बहादुरशाह जफर के समय पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई थी। लवकुश रामलीला कमेटी, अशोक विहार रामलीला कमेटी, जनकपुरी आदि दिल्ली की प्राचीन रामलीलाओं में से हैं। डीसीएम में भी रामलीला 70-80 के दशक में काफी लोकप्रिय हुआ करती थी। राम भारतीय कला केंद्र द्वारा रामलीला का मंचन तीन घंटे में दर्शाया जाता है इस रामलीला में पात्रों की वेशभूषा बहुत आकर्षक होती है। इनके अतिरिक्त दिलशाद गार्डन रामलीला, दिल्ली छावनी की रघुनन्दन लीला समिति मयूर यूथ क्लब, मयूर विहार-1 रामलीला, द्वारका श्री रामलीला सेक्टर-10, द्वारका, सूरजमल विहार रामलीला आदि भी दिल्ली की चर्चित रामलीलाओं में से एक हैं।
आधुनिक युग में रामलीला का महत्व
हिन्दुओं के लिए तो यह धार्मिक आस्था का प्रतीक है, लेकिन इस रामलीला मंचन से आम जन-जीवन से जुडी गाथा है। जिससे किसी भी धर्मं अथवा धर्म=प्रचार से कोई लेना देना नहीं. बल्कि अगर इसे एक जिज्ञासु व्यक्ति के तौर पर लिया जाए तो यह समाज में सद्कर्मों एवं अच्छे संस्कारों की परिकल्पना के माध्यम से आदर्श समाज विकसित करने में बहुत सहायक साबित हो सकता है। आधुनिक युग में रामलीला का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि ज्यादातर बच्चा हो या जवान हो या वृद्ध सब मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। इस चमत्कारी यंत्र से छुटकारा पाकर रामलीला को जीवंत (लाइव) देखना विशेष मायने रखता है। वैसे भी सदियों से ही,रामलीला का उद्देश्य ही आदर्श समाज का गठन करना है। इसीलिए इसके आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी धर्मों के लोग एकजुट होकर तन-मन-धन से सहयोग भी करते हैं। समाज में आपसी-भाईचारे, मेल-मिलाप, कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है रामलीला।
(लेखक एफआईएमटी कालेज, आईपी यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में बतौर एसिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं)

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