सत्यनारायण की कथा से मिलती है भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति

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भारत वर्ष में सनातन धर्म में विभिन्न व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। इसी क्रम में भगवान विष्णु की आराधना उपासना का अपना ही महत्व है। सनातन धर्म मे यह माना जाता है कि ब्रम्हा जहां उत्तपत्ति का, भगवान शिव संहार का काम देखते हैं, तो भगवान विष्णु समस्त सृष्टि का पालन पोषण करते हैं। उनकी कृपा से ही मनुष्य अपने कर्मो का फल भोगता है। अतः उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए हर घर में सत्यनारायण की कथा का आयोजन होता है।

आइए जानते हैं आखिर क्या है सत्यनारायण कथा-
सनातन धर्म में यह माना गया है कि सत्य के आचरण के द्वारा कर्म करने पर मानव को जीवन में किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पडता है और प्रभु नाराज होकर किस प्रकार दंड देते हैं या भक्त से प्रसन्न होकर पुरूस्कार देते हैं यह कथा का सार है।
सत्य को नारायण के रूप में पूजना और सत्य को ही नारायण मानना यही सत्य नारायण है। सनातन धर्म यह मानता है कि सत्य में सारा जगत समाया हुआ है और बाकी सब माया है। सत्य नारायण कथा का दो भाग है-
1. व्रत पूजा
2. कथा का श्रवण या पाठ करना।
सत्यनारायण व्रत कथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है।

सत्यनारायण पूजा कब करनी चाहिए –
यह कथा पूर्णिमा के दिन, बृहस्पतिवार के दिन या किसी पर्व विशेष के लिए परिवार में आयोजित की जानी चाहिए।

सत्यनारायण पूजा की सामग्री:
पूजा में खासकर केले के पत्ते, पंचफल, पंचामृत, नारियल, पंचगव्य, रोली, कुमकुम, तुलसी की पत्तेपान, तिल की आवश्यकता होती है। इन्हें प्रसाद के रूप में फल, मिष्ठान और पंजरी अर्पित की जाती है।

सत्यनारायण पूजा से लाभ:
सत्यनारायण की कथा सुनने व्रत रखने से जीवन में सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं। जीवन में कुछ भी अनिष्ट घट रहा है वो रूक जाता है और जीवन में सभी दृष्टि से अनुकूलता की प्राप्ति होती है। ऐसा मानना है कि कलियुग में जिन लोगों को मंत्र, पूजा-पाठ कर्म का ज्ञान नहीं होगा वे भी इस व्रत का पूजन करने से उनके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
सत्यनारायण पूजा के साथ इसमें कुछ कथा का वर्णन जिसे सुनना चाहिए जिसमें बताया गया है कि एक निष्ठावान व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार घटना घटती है और स्वार्थी स्वार्थ के वशीभूत अपना नुकसान कैसे कर बैठता है।
इसमें शतानंद ब्राह्मण, लकड़हारा उल्खामुख नाम का राजा, वैश्य और उसकी पुत्री कलावती, गौ चराने वाले गोप, राजा के द्वारा सत्यनारायण का व्रत रखने से फल मिलना तथा प्रसाद का निरादर करने से किस प्रकार दुख-दरिद्रता को भोगने को वर्णन के माध्यम से बताया गया है कि मानव जीवन में सत्य के आचरण के किस प्रकार जीवन जीये।
बोलिये सत्यनारायण भगवान की जय…

-स्वामी श्रेयानन्द महाराज

बहन से मिलने के बाद अपने पीठ लौटीं मां शूलिनी

 

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