डीयू एडमिशन में जाति प्रमाण पत्रों के लिए तीन साल की छूट देने की मांग

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कोरोना के चलते नहीं बन पा रहे है एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों के जाति प्रमाण पत्र
नई दिल्ली, 22 जुलाई। आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए) के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर पी.सी. जोशी और डीन ऑफ कॉलेजिज डॉ. बलिराम पाणी से दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों और विभागों में शैक्षिक सत्र 2021-22 के अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफिकेट कोर्स के अलावा एमफिल और पीएचडी जैसे कोर्सों में एडमिशन लेने वाले ओबीसी छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों को तीन साल की छूट दिए जाने की मांग की है। डॉ. सुमन कहना है कि जिन ओबीसी कोटे के छात्रों ने वर्ष 2019 में अपने जाति प्रमाण पत्र बनवाए थे उन्हें स्वीकार करते हुए एडमिशन दिया जाए।
डॉ. सुमन का कहना है कि पिछले डेढ़ साल से एसडीएम कार्यालय व तहसील कार्यालय में कोविड के कारण उनके जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे है और न ही जाति प्रमाण पत्रों का नवीनीकरण हो रहा है इसलिए जिनके पास पुराना जाति प्रमाण पत्र है उसे स्वीकार करते हुए उन्हें एडमिशन दिया जाए ताकि छात्रों का साल बर्बाद न हो। उन्होंने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच ऑनलाइन नहीं की जाती, बल्कि फिजिकली होती है। ऐसी स्थिति में जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे है।
डॉ. सुमन ने यह भी बताया कि यूजी व पीजी कोर्सेज के लिए 2 अगस्त से एडमिशन लेने से पूर्व छात्रों के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो रही है जो 31 अगस्त तक चलेगी। पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही कॉलेजों में एडमिशन लेने की पहली लिस्ट जारी की जाएगी। पहली लिस्ट के छात्रों को एडमिशन लेने के लिए तीन दिन का समय दिया जाता है। ऐसी स्थिति में जिन ओबीसी कोटे के छात्रों के पास पुराने जाति प्रमाण पत्र है उन्हें स्वीकार करते हुए एडमिशन दिया जाए और उन छात्रों से कॉलेज/संस्थान अंडरटेकिंग फॉर्म भरवा ले। उन्हें एडमिशन लेने से वंचित ना किया जाए।
डॉ. सुमन ने बताया कि गत वर्ष शैक्षिक सत्र 2020-21 के दौरान ओबीसी कोटे के छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों के न बनने के कारण वे दिल्ली विश्वविद्यालय के विभागों/कॉलेजों में एडमिशन के लिए पंजीकरण नहीं करा पाए। बाद में ओबीसी कोटे के छात्रों की सीटें कॉलेजों ने खाली दिखा दी और कहा कि ओबीसी छात्र उपलब्ध नहीं हुए। डॉ. सुमन का कहना है कि यदि विश्वविद्यालय प्रशासन उन छात्रों को जाति प्रमाण पत्रों में छूट देता तो ओबीसी कोटे की सीटें खाली नहीं रहती। यदि इस साल भी उन्हें जाति प्रमाण पत्र में छूट नहीं दी गई तो इस साल भी ओबीसी कोटे की हजारों सीटें खाली रह जाएंगी। डॉ. सुमन का कहना है कि जो वास्तविक रूप से एडमिशन पाने के हकदार है वही छात्र एडमिशन लेने से वंचित रह जाते हैं। इसलिए कोरोना के चलते ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्र नहीं बन रहे हैं।
जाति प्रमाण पत्रों की आवश्यकता क्यों
डॉ. सुमन ने बताया कि एससी, एसटी के एडमिशन से पूर्व दिल्ली यूनिवर्सिटी में केंद्रीयकृत आधार पर (सेंट्रलाइज एडमिशन प्रॉसेस) पंजीकरण होता था। पंजीकरण कराने का पूर्ण दायित्व एससी, एसटी सेल का होता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता। उन्होंने बताया कि गत वर्ष भी ऑन लाइन एडमिशन हुए थे और इस साल भी कोरोना की तीसरी लहर के कारण ऑनलाइन पंजीकरण व ऑनलाइन एडमिशन होंगे। लेकिन उन्होंने चिंता जताई है कि जिन ओबीसी कोटे के छात्रों के पास 31 मार्च 2021 के बाद का बना हुआ ओबीसी का जाति प्रमाण पत्र नहीं होगा वह एडमिशन नहीं ले पाएगा। उन्होंने कार्यवाहक कुलपति और डीन ऑफ कॉलेजिज से पुनः मांग की है कि छात्रों द्वारा ऑनलाइन पंजीकरण कराने के बाद ओबीसी छात्रों को पुराने जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अंडरटेकिंग लेकर एडमिशन दे। डॉ. सुमन का कहना है कि जैसे ही कोरोना संक्रमण का प्रकोप कम होता है और जाति प्रमाण पत्रों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है उसके मिलने पर कॉलेज/ संस्थान में जमा करा देंगे।
कॉलेजों में बने एससी, एसटी ओबीसी सेल
डॉ. सुमन ने बताया कि यूजीसी ने विश्वविद्यालयोंध् कॉलेजों को सख्त निर्देश जारी किए हैं कि प्रत्येक यूनिवर्सिटी/कॉलेज/संस्थान में एससी, एसटी सेल बने जो इनके अधिकारों की रक्षा करे ,पर देखने में आया है कि अधिकांश कॉलेजों में सेल की स्थापना नही की गई है। सेल छात्रों के एडमिशन, स्कॉलरशिप, जातीय भेदभाव, शिक्षा संबंधी किसी तरह का भेदभाव यदि किया जाता है तो सेल में अपना केस दर्ज कराया जा सकता है, उसके बाद सेल का दायित्व है कि उसकी समस्या का समाधान कराना। उन्होंने मांग की है कि एससी/एसटी/ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की देखरेख करने के लिए प्रत्येक कॉलेज में इन वर्गों के छात्रों के लिए सेल बने। सेल ही उन्हें जाति प्रमाण पत्रों के लिए छूट दे।
कॉलेजों में नहीं है ग्रीवेंस कमेटी
डॉ. सुमन ने बताया कि डीयू के अधिकांश कॉलेजों में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों की किसी तरह की ग्रीवेंस को दूर करने के लिए ग्रीवेंस कमेटी का गठन किया जाता है लेकिन देखने में आया है कि या तो कमेटी है ही नहीं यदि है तो काम नहीं कर रही। जबकि इस कमेटी का दायित्व यूजीसी और एचआरडी के बीच सेतु का काम करना। वह यह देखती है कि हर साल कितने छात्रों का एडमिशन हुआ, शिक्षकों के कितने पद भरे गए, कितने खाली है, क्यों नहीं भरे गए आदि की जानकारी देना है। इसी तरह से छात्रों के कितने एडमिशन हुए, कितने खाली छोड़े, कितनी एडमिशन लिस्ट आई, स्पेशल ड्राइव चलाया गया या नहीं, संपूर्ण जानकारी डीयू, यूजीसी और एचआरडी को भेजनी होती है।
डॉ. सुमन ने बताया कि कॉलेजों में एडमिशन के बाद एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं की जाती है, इसलिए यूनिवर्सिटी एक सर्कुलर कॉलेजों को जारी कर एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के एडमिशन को देखने के लिए एससी, एसटी सेल, एससी, एसटी ग्रीवेंस कमेटी के अलावा शिक्षकों की एक कमेटी इन वर्गों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच करें। साथ ही छात्रों की काउंसलिंग करने के लिए कमेटी बनाई जाए जो इन सारे मामलों को देखें। इसमें उन्हीं वर्गों के शिक्षकों को रखा जाए जो आरक्षित वर्गो से हो।

आप टीचर विंग के अध्यक्ष बने डॉ. हंसराज ’सुमन’

 

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