प्राकृतिक कृषि पद्धति पर शोध व विकास को बने राष्ट्रीय स्तर का संसाधन केंद्र

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शिमला, 17 जुलाई। ग्रामीण विकास, पंचायती राज, कृषि, पशुपालन एवं मत्स्यपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कर्नाटक के बेंगलूरु में आयोजित राज्यों के कृषि एवं बागवानी मंत्रियों के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के उपरांत आज यहां बताया कि सम्मेलन में हिमाचल में कृषि व बागवानी विकास से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई।
उन्होंने कहा कि दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय को दोगुना करने के विजन को साकार करने के लिए कृषि की दशा और दिशा तय करने पर सार्थक चर्चा की गई। प्रदेश ने इस सम्मेलन के माध्यम से कृषि से जुड़े विभिन्न विषय केंद्रीय कृषि मंत्री के समक्ष उठाए। हिमाचल में हिमालय क्षेत्र की प्राकृतिक कृषि पद्धति पर शोध एवं विकास के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का संसाधन केन्द्र स्थापित करने का आग्रह किया गया।
प्रदेश में बीज आलू के उत्पादन का विषय उठाते हुए उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पूर्व सिस्ट नेमाटोड से प्रभावित होने के कारण प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में इसका उत्पादन रोक दिया गया था। उन्होंने अनुरोध किया कि इसका उत्पादन पुनः शुरू करना आवश्यक है और प्रदेश के उन क्षेत्रों में जहां सिस्ट नेमाटोड का प्रकोप नहीं है, वहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषित संेटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया जाए।
वीरेंद्र कंवर ने कहा कि प्राकृतिक कृषि निश्चित रूप से रसायनिक कृषि का ऐसा विकल्प है, जो खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा और समृद्ध किसान से आत्मनिर्भर भारत की ओर ले जाने का माध्यम बन सकता है। हिमाचल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं। प्रदेश ने प्राकृतिक खेती में पहल करते हुए जून 2018 से अब तक एक लाख 74 हजार किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि के अंतर्गत् प्रशिक्षण प्रदान किया है और एक लाख 71 हजार किसानों ने 10 हजार हेक्टेयर भूमि में रसायनमुक्त खेती शुरू कर दी है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में इसी वर्ष से जापान और भारत की सहायता से एक हजार करोड़ रुपये की लागत से जाइका चरण दो फसल विविधिकरण का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। वर्ष 2029 तक चलने वाले इस कार्यक्रम के अंतर्गत् किसानों की आय को बेसलाइन पर प्रति हेक्टेयर 62409 रुपये से बढ़ाकर दो लाख 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम से लगभग 10 हजार किसानों को लाभ होगा।
कृषि मंत्री ने कहा कि उन्होंने सम्मेलन में एकीकृत कृषि मॉडल के विषय पर चर्चा करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें कृषि, बागवानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, ग्रामीण विकास एवं अन्य संबद्ध गतिविधियों को एक समग्र दृष्टि से देखते हुए एकीकृत मॉडल की दिशा में आगे बढ़ना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि किसान परिवार एक ही है, जो खेती करता है लेकिन अलग-अलग विभाग उसके लिए विभिन्न योजनाएं चलाते हैं, जो बहुत बार समानांतर, विरोधाभासी, आपस में प्रतियोगी या किसान हित से परे हो जाती हैं।
वीरेंद्र कंवर ने कहा कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों की चुनौती से पार पाते हुए प्रदेश के मेहनतकश किसानों ने बेमौसमी सब्जियों, फूलों, परंपरागत अनाजों और फलों के उत्पादन में अपनी अलग पहचान बनाई है। हिमाचल प्रदेश कश्मीर के बाद देश में सबसे बड़ा उत्पादक है। डबल इंजन सरकार की किसान बागवानों के लिए कल्याणकारी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने में भी हिमाचल अग्रणी रहा है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश को कृषि कर्मण पुरस्कार और ई-नाम में पीएम एक्सीलेंस इन सिविल सर्विस अवार्ड प्राप्त हो चुके हैं।

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