“नमूने” को बक्श कर जिंदगी में आगे बढ़ना शेष है, उसकी इन्तहाई शराफत का एक और नमूना पेश है!

913
file photo sourceL social media

“धर्म की शाला केस”

सुप्रभात! वैसे तो यह बताने की जरूरत नहीं है की मैं किसकी शराफत की बात कर रहा हूँ पर जिस तरहं से ओशिन शर्मा ने अपने विधायक पति पर F.I.R दर्ज ना करवा कर अपनी समझदारी, सच्चाई और ईमानदारी का परिचय दिया है असल में उसी को “शराफत” कहते हैं। अब यह बताने की जरूरत शायद नहीं है की “नमूने” किसको कहा गया है। कांग्रेसी बहन मामले को राजनितिक तूल देकर विधायक को गिरफ्तार करवाना चाहती हैं और उसे बर्खास्त करने की मांग कर रही हैं। दुसरी ओर भाजपा के प्रवक्ता ने कहा की वह कोई दबाव पुलिस पर नहीं डालेगी (हालांकि, ऐसा दावा किसी ने नहीं किया था, की सरकार विधायक को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव डाल सकती है या डाल रही है) इसका मतलब साफ़ है कि राजनीतिक दल सत्ता में होने पर पुलिस पर ऐसे मामलों में दबाव डालती है या यूँ कहिये “चोर की दाढ़ी में तिनका” ? ये तो विमुक्त रंजन जी की खुशकिस्मती है की F.I.R दर्ज हुई ही नहीं, वर्ना प्रवक्ता के बयान से ही उन्हें समझ आ चुका था शायद, की वह कितने दबाव मुक्त हैं?
उधर माननीय मुख्यमंत्री जी कह रहे हैं कि परिवार का मामला है दोनों को मौका देना चाहिए (माननीय भूल गए जब बात चारदीवारी के बाहर आ जाये तो वह मामला परिवार का नहीं रह जाता खास तौर से महिला शोषण के मामले में) और यदि सबको मामला पारिवारिक लगता है तो राज्य महिला आयोग S.P साहब से जवाब क्यों मांग रही है? इन सबकी बातों और इनकी राजनीति को बहुत ही अच्छा जवाब दिया ओशिन शर्मा ने F.I.R ना करवा कर। ओशिन शर्मा ने अपने इस फैसले से एक बात तो साबित कर दी है की वह वाकई एक समझदार महिला हैं और आने वाले दिनों में काबिल अफसर होंगी। जो लोग ओशिन शर्मा पर शक कर रहे थे या विशाल नैहरिया का पक्ष ले रहे थे उनको समझना होगा की एक औरत का सबसे बड़ा सपना शादी और उसके बाद संतान सुख होता है, लेकिन ओशिन शर्मा ने जब अपने वीडियो में बच्चा ना करने का कारण बताया तो मुझे वो जायज़ लगा (पर पुरूष प्रधान समाज के रसूखदार, राजनीतिक और कुछ अंधे लोगों को यह बात समझ नहीं आई के जिस देश में महिलाएं आज भी अपने “उन” दिनों के लिए नैपकिन सरेआम लेने में संकोच करती है वहां सरेआम एक पढ़ी लिखी महिला बच्चा ना पैदा करने की बात सबको बता रही है उसकी कुछ तो वज़ह होगी?) ओशिन का यह फैसला बिलकुल सही था की ऐसा व्यक्ति जिसका मानसिक संतुलन ठीक ना हो (बकौल ओशिन) या जिसके साथ वह जीवन बिताना ही नहीं चाहती तो उसे संतान क्यों? यहाँ आपको बता दूं के भारत में 80% महिलाएं दुखी होकर यही कहतीं हैं के “मैं तो बच्चों की वज़ह से टिकी हुई हूँ ” और 100% परिवार वाले बहू को या बेटी को यही कहते हैं “बच्चा हो जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा” , लेकिन ऐसा होता नहीं है जनाब, क्योंकि उससे केवल और केवल औरत ही बंध जाती है मर्द फिर भी वैसे ही रहते है।
ओशिन शर्मा का यह कदम उन महिलाओं के लिए उन परिवारों के लिए अलार्मिंग सिच्यूऐशन है जो यह समझते हैं कि बच्चा होने पर सब ठीक हो जायेगा। यही कारण भी है आज उन लोगों के तलाक के केस भी चल रहे हैं जिनके बच्चों की उम्र 5 से लेकर 25 साल है। बच्चे होने के बाद तलाक का सबसे बुरा असर महिला पर और उसके बाद बच्चों पर पड़ता है जबकि पुरूष आजाद रहता है (अधिकांश मामलों में) और तो और तलाकशुदा पुरूष बेचारा तो दुसरी तरफ तलाक़ शुदा महिला चरित्र हीन हो जाती है खासतौर से भारत में । इसलिए बच्चे होने के बाद तलाक लेने से अच्छा है कि उससे पहले ही अलग हो जायें और वही ओशिन करने जा रही है। मैं इस मामले में उसके साथ हूं और आप …?.

जय हिंद जय हिमाचल

आपका

रविन्द्र सिंह डोगरा
(नोट: इस लेख के विचार विवाह के बाद पत्नी पर होने वाले अत्याचारों के ऊपर आधारित हैं)

(इस लेख में शामिल विचार लेखक के निजी विचार हैं)

कुल्लू घटना: वज़ीरे आज़म के नायब को ये गुमान है यारब, जिलों के सुबेदार उनके गुलाम हैं शायद!!

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here