टीजीटी संस्कृत शिक्षकों को भी मिलेंगे समान लाभ

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मंडी, 4 सितंबर। राज्य सरकार टीजीटी संस्कृत शिक्षकों को शीघ्र ही प्रदेश में अन्य टीजीटी शिक्षकों के समान लाभ प्रदान करेगी। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने आज मंडी जिले के सुंदरनगर में संस्कृत भारती हिमाचल प्रदेश और भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संस्कृत-उत्कर्ष महोत्सव की अध्यक्षता करते हुए यह घोषणा की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है और ‘देव वाणी’ को उचित सम्मान देना इस दिव्य भूमि का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि इसी अवधारणा के दृष्टिगत संस्कृत को दूसरी भाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के इस निर्णय का उन लोगों ने विरोध किया था, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल हर घर तिरंगा अभियान को निष्फल बताकर विरोध किया था।
जय राम ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार संस्कृत भाषा को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि शिमला जिले के रामपुर क्षेत्र के शिंगला और कुल्लू जिले के मनाली के निकट जगतसुख में नए संस्कृत महाविद्यालय स्वीकृत किए गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने संस्कृत महाविद्यालय डंगार को अपने नियंत्रण में लेने की मांग को भी पूरा किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों को टीजीटी शास्त्री एवं भाषा अध्यापक के रूप में नामित करने का भी निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के इस निर्णय से अब 15,000 भाषा अध्यापकों और शास्त्री अध्यापकों को टीजीटी हिंदी और टीजीटी संस्कृत के रूप में नामित किया गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत महाविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्ति के साथ ही संस्कृत लेक्चरर्स के नए पद सृजित किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती हिमाचल प्रदेश में वर्ष 1999 से संस्कृत को सार्वजनिक व्यवहार और बोलचाल में शामिल करने के लिए कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कर समाज के हर वर्ग तक संस्कृत भाषा को पहुंचाने का कार्य कर रही है।
शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार ने अगामी वर्ष से तीसरी कक्षा से संस्कृत भाषा पढ़ाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के सक्षम नेतृत्व में संस्कृत को राज्य की दूसरी भाषा घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत एक देवभाषा है और देवभूमि हिमाचल संस्कृत भाषा को वास्तव में ही सम्मान देने वाला देश का पहला राज्य है।
अखिल भारतीय संस्कृत भारती संगठन मंत्री दिनेश कामथ ने कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और पुरातन काल से ही हर भारतीय को संस्कृत भाषा विरासत में मिली है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में सभी आध्यात्मिक संस्कार और पूजा संस्कृत भाषा में की जाती है। उन्होंने कहा कि यह प्रमाणित हो चुका है कि सबसे पहले लिखित अभिलेख संस्कृत भाषा में थे और यह ऋग्वेद से लिए गए हैं, जो कि प्राचीन काल से हिन्दू सूक्त और मंत्रों का संग्रह है। उन्होंने कहा कि संस्कृत वास्तव में विश्व की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा और सभी भाषाओं का आधार है।
विधायक राकेश जम्वाल ने कहा कि संस्कृत को राज्य में दूसरी भाषा का दर्जा दिया गया है और इसका श्रेय मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर को जाता है। उन्होंने मुख्यमंत्री से उनके निर्वाचन क्षेत्र में संस्कृत महाविद्यालय के भवन निर्माण के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाने का भी आग्रह किया।
इस अवसर पर प्रांत मंत्री संजीव और मनोज शैल ने मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया।
संस्कृत भारती हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा, भाषा कला एवं संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. पंकज ललित, हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सुरेश सोनी, जिला परिषद के अध्यक्ष पाल वर्मा, उपायुक्त मंडी अरिंदम चौधरी और पुलिस अधीक्षक शालिनी अग्निहोत्री भी इस अवसर पर उपस्थित थीं।

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