- सतपाल महाराज के जातिवादी पैंतरे का तोड़ है कवींद्र
- भाजपा के खेमे में सेंध लगाने में सक्षम हैं कवींद्र
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज यदि चौबट्टाखाल से दोबारा चुनाव लड़ते हैं तो उनको चुनौती देने के लिए कांग्रेस को एक मजबूत दावेदार चाहिए। कांग्रेस को यहां से लगातार दो बार से हार मिल रही है। इस बार समीकरण में बदलाव हो सकता है बशर्ते कांग्रेस का दावेदार मजबूत हो। सतपाल महाराज ने पिछले कुछ ही दिनों में गांवों में रास्ते बनाने के नाम पर, स्कूलों की बाउंड्री बनाने, सड़क बनाने समेत अनेक विकास कार्यों के बहाने ग्राम प्रधानों और स्कूलों को धन अंधाधुंध बांटना शुरू कर दिया है। साढ़े चार साल की चुप्पी के साथ सतपाल महाराज का यह पैंतरा सब जानते हैं।
भाजपा की जीत में इस क्षेत्र के 18 प्रतिशत ब्राह्रमण मतदाताओं का बड़ा योगदान होता है। सब जानते हैं कि सतपाल महाराज जाति की राजनीति करते हैं और घोर जातिवादी हैं। इसके बावजूद ब्राह्रमणों ने पिछली बार उन्हें भाजपा उम्मीदवार होने के कारण वोट दिया क्योंकि कांग्रेस ने भी राजपूत को टिकट दिया था। इस कारण उनकी जीत हो गयी। इस बार यदि यहां से ब्राह्रमण उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा जाता है तो भाजपा के ब्राह्रमण वोट बैंक में सेंघ लगाई जा सकेगी। इस बार सतपाल महाराज के खिलाफ क्षेत्र में भारी नाराजगी है। इस नाराजगी को यदि कांग्रेस कैश कराना चाहती है तो कवींद्र इस्टवाल एक बड़ा विकल्प साबित हो सकते हैं। कवींद्र की भाजपा में भी अच्छी पैठ है और वह इलाके में लंबे समय से सक्रिय भी हैं। कवींद इस्टवाल कांग्रेस का झंडा उठाए पिछले पांच साल से लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। पिछले दो साल कोरोना काल में भी उन्होंने इलाके में कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक करने में अहम भूमिका अदा की। साथ ही उन्होंने गांवों की समस्याओं और जनहित के मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन भी किया है। वह क्षेत्र के आम जनमानस के साथ नजर आएं हैं। यहां लगभग 17 प्रतिशत दलित और दो प्रतिशत ओबीसी वोट भी हैं। इसे परंपरागत तौर पर कांग्रेस का ही वोट बैंक माना जाता है। ऐसे में यहां का चुनावी समीकरण बदल सकता है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]