‘आप’ से यूं क्यों हो रही भागमभाग?

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  • क्या अभिमन्यु साबित होंगे कर्नल कोठियाल? क्या फेल हो गये मोहनिया?
  • सुविधा की राजनीति से अधिक प्रभावी होंगे पहाड़ के मुद्दे

आप से नेताओं की विदाई का क्रम कल भी जारी रहा। रोजाना कई नेता आप छोड़ कर अन्य दलों में जा रहे हैं। प्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ रही आप के लिए यह खतरे का संकेत है। अभी तो पार्टी से लोग जोड़े भी नहीं कि टूट रहे हैं। भले ही आप के नेता कोई भी तर्क दें लेकिन सच यही है कि प्रभारी दिनेश मोहनिया की रणनीति फेल हो रही है। उनके नेतृत्व पर अभी से सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के नेताओं को ही शिकायत है कि उनका व्यवहार सही नहीं है। जिम्मेदारी बांट दी गयी लेकिन जवाबदेह नहीं बनाया गया है। लीगल सेल समेत कई प्रकोष्ठों का गठन ही नहीं हुआ। कर्नल अजय कोठियाल चूंकि राजनीति में नये हैं और मंच से कह रहे हैं कि उन्हें राजनीति नहीं आती, इसलिए माना जा सकता है कि उन्हें नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाना नहीं आता। तो प्रभारी क्या घास छील रहे हैं? और टीम कहां हैं? उपाध्यक्ष, सचिव आदि कहां गायब हैं? क्या सभी नौसिखिया हैं कि मिसाइल के दौर में डंडा लेकर युद्ध में उतर गये?
कर्नल अजय कोठियाल ने सीएम चेहरा घोषित होने के बाद आम आदमी पार्टी और संयोजक अरविंद केजरीवाल को प्रदेश के सुदूर गांवों तक पहुंचा दिया है। वह मतदाताओं को रिझाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। कोशिश में कमी नहीं है लेकिन कवर फायरिंग के लिए कोई है ही नहीं। उन्हें कांग्रेस और भाजपा के कैडर से लड़ना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर भी और मैदान में भी। आप का आईटी सेल फ्लाप साबित हो रहा है। उनको कर्नल और केजरीवाल के अलावा कुछ भी नया नहीं सूझ रहा है। ऐसे में कर्नल कोठियाल इस चुनावी समर में अभिमन्यु बने नजर आते हैं।
आप में चेहरों का संकट यथावत बना हुआ है। जो दो-चार चेहरे थे, दिल्ली के आपियों ने उन्हें डरा दिया कि चुनाव लड़ना है तो दो करोड़ रुपये की व्यवस्था करो। कई अच्छे उम्मीदवार डर गये। कुछ आइसोलेशन में चले गये और कुछ पार्टी छोड़ रहे हैं। मैं यह भी बता दूं कि यदि कर्नल कोठियाल ने गंगोत्री पर ध्यान नहीं दिया तो उनको इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। यदि वो हरदा की तरह दो सीटों पर लड़ने की सोच रहे हैं तो उनकी फजीहत होनी तय है।
आप उत्तराखंड में बेहतर ढंग से चुनाव लड़ सकती थी यदि वह पहाड़ के ज्वलंत मुद्दों को उठाती तो। लेकिन आप ने मतदाताओं को रिझाने के लिए शार्टकट अपनाया यानी सुविधा की राजनीति। मसलन फ्री बिजली, एक लाख रोजगार, फौजियों को नौकरी, महिलाओं को पेंशन आदि-आदि। जबकि प्रदेश की जनता को भाजपा-कांग्रेस के मजबूत विकल्प की जरूरत है जो कि उनके बुनियादी समस्याओं और ज्वलंत मुद्दों का समाधान करे। जरूरत इस बात की थी कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन, स्थायी राजधानी गैरसैंण, सशक्त भू-कानून, वन्य जीव, स्किल्ड डेवलमेंट, टूरिज्म, वन्य जीव, युवा और महिला नीति पर फोकस किया जाता। अध्यात्मिक राजधानी बकवास मुद्दा है। यदि टूरिज्म को ही फोकस किया जाता है तो अध्यात्मिक राजधानी वैसे ही बन जाएगी।
संभलो आप, नहीं तो अभिमन्यु बने कर्नल कोठियाल को राजनीति का चक्रव्यूह तोड़ना संभव नहीं होगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

कमाल के राम, तुम दोनों को प्रणाम

 

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