हंगामा है क्यों बरपा, पार्टी ही तो बदली है!

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  • आईपीएल और चुनाव अब एक जैसे, हरक का स्वागत करो
  • जो रिस्क लेगा, खर्च करेगा, वहीं कमाएगा भी तो

पता नहीं, पिछले पांच दिन से हरकू भाई के पीछे सब पड़े हुए थे। हंगामा हो रहा था। इधर, टिकट के दावेदार उनकी घर वापसी न हो, इसकी दुआ कर रहे थे तो उधर, लैंसडाउन के न्याय पंचायत, ब्लाक के जनप्रतिनिधियों और ग्राम प्रधानों की दाढ़ी रंकसा रही थी कि हरकू दा कब आएं कि उनकी मौज हो जाए। उन्हें पूरा विश्वास है कि चुनाव में खाने को मीट-भात मिलेगा। जमकर दारू मिलेगी और जेब भारी हो जाएगी। हम पहाड़ी बहुत ही पढ़े-लिखे हैं। समझ जाते हैं कि विधायक कोई भी बने, कटना तो हमें ही है। इसलिए चुनाव के कुछ दिन मौज हो जाएं तो क्या बुरा है? कहते हैं कि सुख के कुछ क्षणों के सहारे दुख के कई दिन बीत जाते हैं। बस वही हाल हमारे हैं।
हरकू दा दिल खोलकर खर्च करते हैं। वो सतपाल महाराज या हरीश रावत जैसे कंजूस नहीं हैं कि उत्तराखंडियत के नाम पर कार्यकर्ताओं को बासी रोटी और प्याज थींच कर दे दें। हरकू दा, यारों के यार हैं, दिलदार हैं। देखा नहीं, हर बार सीट बदलते हैं और दोस्ती की एक यादगार वहां छोड़ देते हैं।
हरकू दा चुनाव बहुत ही आक्रामक ढंग से लड़ते हैं। ठीक क्रिस गेल या ऋषभ पंत की तरह। पहली बॉल से छक्का मारने की कोशिश। हरकू दा जहां भी चुनाव लड़ते हैं। सबसे पहले ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख और अन्य जनप्रतिनिधियों को खरीद लेते हैं। जब जेब में माल आता है तो होंठों पर स्वतः मुस्कान आ जाती है। अच्छे-बुरे का भेद मिट जाता है। गांधी जी को भले ही कुछ लोग कोसते हों लेकिन जब जेब में वही गांधीजी हो तो आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाता है। हरकू दा को यह पता है। वो खूब दौलत लुटाते हैं। जब लुटाते हैं तो वसूलेंगे भी। तो क्या बुरा मानना? हम बिकते हैं और वो खरीद लेते हैं। तो दोष बिकने वाले का या खरीददार का?
दूसरी बात, कांग्रेस सत्ता में नहीं थी। कांग्रेसी नेता जब सत्ता में होते हैं तो रात-दिन मलाई खाते हैं। उन्हें कल की परवाह नहीं होती। सोचते हैं कि सरकार उनकी ही रहेगी। सो, बचत जीरो। इस बार कांग्रेस को अच्छी सीटें मिलने का अनुमान है। हवा भी पक्ष में है। लेकिन फंड की कमी अखर रही थी। हरक तो भामाशाह हैं। अरबों कमाते हैं और करोड़ों लुटा देते हैं। अब समुद्र में से दो-चार लोटे कांग्रेस के नेताओं और पार्टी फंड में दे दिया तो क्या बुरा है?
जो हरकू की इंट्री में देरी की, वह भी नाटक था। कार्यकर्ताओं को दिखाना था कि मुश्किल से दाखिला दिया। जबकि मन ही मन कांग्रेसियों के लड्डू फूट रहे थे। दुधारू गाय मिल गयी। हरकू दा के आने से कांग्रेस को आठ-दस सीटों को जीतने में आसानी होगी। क्योंकि फंड हरकू दा उपलब्ध कराएंगे। कंजूस हरीश रावत को चुनाव लड़ने के लिए अब अपनी जेब में हाथ नहीं डालना होगा। प्रीतम को रामशरण नौटियाल की अथाह दौलत से मुकाबला करने का अवसर मिल जाएगा। बीपीएल श्रेणी का राजपाल बिष्ट सबसे धनवान सतपाल महाराज से टकरा कर महाराज को धूल चटा सकेगा। और देवेंद्र तो देवों की धरती में यादव आया है। मेहमाननवाजी में हम किसी से कम नहीं। लिहाजा, देवेंद्र संभवतः चांद पर प्लाट खरीद लें। उनके परिजन तो लग्जरी शिप में वर्ल्ड टूर की टिकट बुक करा चुके होंगे।
जब इतना कुछ लेन-देन होगा तो हरकू दा की बहू को सीट देने पर सवाल तो नहीं बनते? न ही किसी तरह का हंगामा होना चाहिए। आखिर चुनाव और आईपीएल एक जैसे हैं कि जो अधिक बोली लगाएगा, अच्छा खिलाड़ी वही पाएगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

आखिर सहानुभूति का हकदार कौन?

 

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