वीरान पहाड में खुशियों की किलकारी है मोहित

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  • एक युवा जो फिर आबाद करना चाहता है पहाड़
  • रुद्रप्रयाग की राजनीति में भोर की किरण सी खिली

मोहित डिमरी रुद्रप्रयाग से यूकेडी प्रत्याशी है। मैं उसे 2013 से जानता हूं। उन दिनों में राष्ट्रीय सहारा का गढ़वाल-कुमाऊं डेस्क प्रभारी था। केदारनाथ आपदा आई थी। महाजलप्रलय के बाद केदारघाटी से लेकर रुद्रप्रयाग तक चारों ओर बर्बादी का आलम था। पुल बह चुके थे और सैकड़ों बच्चे अनाथ हो चुके थे। मोहित ने एक पत्रकार के तौर पर न सिर्फ उन असहाय और मुसीबत में फंसे लोगों की आवाज उठाई बल्कि वह उनकी मदद के लिए भी हरसमय तत्पर रहने लगा। आपदा के समय की अच्छी रिपोर्टिंग के लिए सहारा ने उसे दिल्ली में सम्मानित भी किया।
मैंने उसे कई बार समझाया कि समाजसेवा में क्या रखा है। दिल्ली या देहरादून में पत्रकारिता में अच्छा करियर है। लेकिन उसने तो ठान ली थी कि पहाड़ में ही रहना है। वह कहता है कि अपनो के बीच प्यार मिले या दुत्कार। सब सहन कर लूंगा। लेकिन पहाड़ की पीड़ा को कम तो कम पाऊंगा। वह कभी किसी दलित गरीब महिला के आशियाने की लड़ाई लड़ता रहा तो कभी चारधाम यात्रा मार्ग से विस्थापित व्यापारियों की। कभी भरदार की पानी के लिए संघर्ष करता तो कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर आवाज उठाता। कोरोना काल में उसने देश भर में फंसे प्रवासियों की मदद पहुंचाने के लिए हरसंभव कोशिश की। कोरोना की दूसरी लहर में रुद्रप्रयाग में जब दवाओं की कमी थी तो उसने देहरादून के कई सहयोगियों की मदद से दवाओं की आपूर्ति करवाई। वह आर्थिक तौर पर संपन्न न होते हुए भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी बीमार के लिए इलाज की व्यवस्था करवा देता है या किसी जरूरतमंद को खून की व्यवस्था करवा देता है।
पिछले आठ-नौ साल से मैं उसे यूं ही पहाड़ की पगडंडियों से लेकर सड़क पर घूमते हुए देखता हूं। लगभग दो साल पहले उसने मुझसे कहा कि वह राजनीति में जाना चाहता है। मैंने कहा, कीचड़ में। वह बोला, कोई तो साफ करेगा? कोशिश कर लूं। मैंने उसे भाजपा-कांग्रेस में जाने की सलाह दी तो नहीं माना। कहा, यूकेडी ने ही राज्य दिलवाया, उसके साथ ही जाउंगा।
कई बार मैं मजाक में उससे कहता हूं कि तेरी उम्र के युवा लड़कियों के पीछे भागते हैं और तू गांव-गांव भटक रहा है। वह मुस्करा भर देता है। पहाड़ को समर्पित मोहित निश्चित रूप से उत्तराखंड की राजनीति में एक नवजात बच्चे की सी किलकारी है। एक सुखद भविष्य है। एक उम्मीद है कि कोई तो है जो सच्चे मायने में पहाड़ के लिए पहाड़ में रहना चाहता है। बसना चाहता है, पहाड़ को आबाद करना चाहता है। मोहित डिमरी को अग्रिम शुभकामनाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

वो महाझूठे हैं, 99 प्रतिशत झूठ बोलते हैं!

 

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