जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय?

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  • तय है कि सीएम बन भी गये तो भी फजीहत ही होगी
  • भजन करने की उम्र में सत्ता का लालच छोड़ दो हरदा

भारत युवाओं का देश है। यहां के युवा अपने बुजुर्गों की नहीं सुनते, लेकिन राजनीति में बुजुर्गों के इशारे पर जान देने और लेने को तैयार रहते हैं। कुछ ऐसा ही हाल उत्तराखंड में भी है। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत ने पार्टी में अपनी उपेक्षा देख भावुक पोस्ट लिखी है। यह उनकी सहानुभूति हासिल करने की एक चाल भी हो सकती है क्योंकि वो राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। उनको मलाल है कि संगठन उनका साथ नहीं दे रहा, तो इसमें नई बात क्या है? जिस उम्र में लोग ईश्वर के नाम का भजन करते हैं, उस उम्र में जब कोई नेता सत्ता के शीर्ष पर बैठने का ख्वाब देख रहा हो तो उसका विरोध तो होगा ही।
हरदा को चाहिए कि वह राजनीति से संन्यांस लें या संरक्षक बनकर नेताओं को गाइड करें। वह चाहें तो अपनी राजनीति विरासत अपने बेटे आनंद रावत या बेटी अनुपमा को दे सकते हैं। उनका इरादा भी दोनों को राजनीति में स्थापित करने का ही है। यही करें। निश्चित तौर पर इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा कहीं भारी है। सर्वे में भी हरदा को सबसे लोकप्रिय सीएम बताया जा रहा है लेकिन सच यह भी है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है और वो सीएम बन भी गये तो भी अधिक समय तक कुर्सी पर नहीं टिक सकते। उत्तराखंड की राजनीति में टांग खींचने और कुर्सी से गिराने की जो कुप्रथा चल रही है उसकी नींव के एक पत्थर तो हरदा भी हैं। जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। इसलिए हरदा दुख न करो, भजन करो और मस्त रहो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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