प्रदेश में खत्म हुआ हरदा युग, कांग्रेस नहीं

609
  • 50 लाख मतों में से कांग्रेस को मिले लगभग 19 लाख वोट
  • वोट प्रतिशत भी 33.46 से बढ़कर 37.91 प्रतिशत हुआ, मजबूत विपक्ष बनने की जरूरत

मोदी के अंडर करेंट में इस बार भी भाजपा को उत्तराखंड में प्रचंड जीत मिली है। भाजपा के 47 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे। हालांकि इनकी संख्या पिछली बार के मुकाबले दस घट गयी। साथ ही भाजपा का वोट बैंक भी गिरा। यानी इस बार भाजपा को 44.33 प्रतिशत मत पड़े जो कि 2017 से लगभग सवा प्रतिशत कम है। प्रदेश की 70 सीटों पर 82 लाख मतदाताओं में से लगभग 50 लाख लोगों ने मतदान किया। भाजपा को लगभग 24 लाख तो कांग्रेस को 19 लाख वोट मिले। सीटें भी 11 से बढ़कर 19 हो गयीं। यानी कांग्रेस को अपनाने वाले मतदाता भी कम नहीं।
कांग्रेसियों को इस बार अधिक उम्मीद थी और पार्टी उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी, जितना करना चाहिए था। कांग्रेसियों की यह निराशा तब और बढ़ गयी जब उनका सेनापति यानी हरीश रावत खुद ही चुनाव हार गये। यह सही है कि हरीश रावत ने अपने जीवन की सभी कुंठाओं को इस चुनाव में उतारने की कोशिश की। उनकी जिद, गलत निर्णयों और कई कुछ कमजोर उम्मीदवारों के चयन के कारण चुनाव में कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचा लेकिन सच यही है कि यदि वो ऐसा नहीं भी करते तो भी कांग्रेस सत्ता से दूर ही रहती। कारण, भाजपा के पास मोदी हैं।
हरीश रावत ने पिछले पांच दशक में देश और प्रदेश दोनों के लिए अतुलनीय योगदान दिया है लेकिन अपनी एकला चलो नीति, गुटबाजी, अति महत्वकांक्षी होना और नौटंकी से वो जनता की नजरों में खटकने लगे। यदि वो रामनगर से भी लड़ते तो वहां से भी निश्चित तौर पर हार जाते। कांग्रेस को अब मान लेना चाहिए कि प्रदेश में हरदा युग का अंत हो गया है। अब हरदा को पार्टी नेताओं द्वारा आडवाणी जी की तरह सम्मान दिया जाना चाहिए। 75 साल की उम्र में भी उनका जज्बा गजब का है, लेकिन किस्मत का लिखा कौन बदल सका है?
दूसरी बात, पिछले पांच साल में देखा जाएं तो कांग्रेस ने विपक्ष की भूमिका सही से अदा की ही नहीं। वो तो यही सोचती रही कि बिल्ली के भाग का छींका टूटेगा। यानी भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर होगा और जनता के पास विकल्प तो है नहीं तो जीत कांग्रेस की होगी। लेकिन प्रदेश की महिलाओं ने भाजपा की झोली वोटों से भर दी। उन्होंने भाजपा के गधा प्रसाद रूपी और थकेले उम्मीदवारों को भी नहीं देखा। मोदी को देखा और कमल का बटन दबा दिया।
कांग्रेस को अब चाहिए कि वो कुछ कमा कर खाए। यूं छींका टूटने का इंतजार न करें। अच्छी मेहनत करें तो पांच साल से पहले भी कई चुनाव हैं। सकारात्मक परिणाम आएंगे। तब तक जब तक कि अन्य कोई विकल्प नहीं, और जब तक कि यूकेडी के कई हरदाओं का युगावसान नहीं होता।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

झूठा नेता, हवाई वादे और दिल्ली दरबार

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here