वाह बेटा, चुनाव आ रहे, मुंह में लड्डू फूटा!

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  • दांतों में चिरचिरी-बरबरी तो दिमाग में ‘दो घूंट गम दूर करने के‘ का ख्याल आ गया
  • बोड़ी-काकी और दीदी-भुली को ललचा रही साड़ी, जलेबी और सिलाई मशीन

एम.ए, बीएड पास राम सिंह रावत इन दिनों बहुत खुश है। वह सुबह उठते ही श्याम, कबीर, विकास और अन्य दोस्तों के साथ नेताओं के कार्यालयों के चक्कर काटने में लग जाता हैं। राम सिंह ने जब बीए किया तो उसने सोचा कि वह सिविल सर्विस की तैयारी करेगा। ग्रेजुएशन करने के बाद विगत पांच साल से यूपीएससी का सपना पीसीएस, समूह ग, और अब फारेस्ट गार्ड में तब्दील हो गया। पिता ताने देते हैं और मां भी कब तक बचाव करेगी? एमए कर लिया, बीएड भी कर लिया। पांच हजार रुपल्ली की टीचर की नौकरी भी नहीं मिल रही। कोरोना से अधिकांश निजी स्कूल बंद हैं और सरकारी भर्तियां नहीं निकल रही।
राम सिंह के अन्य दोस्तों का भी यही हाल है। ऐसे में चुनाव उनके करियर के बहुत ही सुखद दिन हैं। नेताजी के साथ कार में घूमों, गली-गली फिरो, ढाबे का कूपन लो, शाम को दारू-मुर्गे का जुगाड़ और जेब में पोपले मुंह के गांधीजी भला किसे खराब लगते हैं? मां-बाप को सब्र है कि चलो कुछ दिन के लिए ही सही, बेटे को काम मिल गया। भला घर में जवान बेरोजगार बेटा किसे सुहाता है?
इधर, गांव की दाणी-स्याणी बोड़ी, काकी और दीदी-भुलियों की उम्मीद बढ़ गयी है। पिछले चुनाव में समोसे और कोल्ड ड्रिंक मिला था। कुछ गांवों में महिलाओं को साड़ियां भी मिलीं। कुछ को सिलाई मशीन भी। किसी को कुछ और किसी को कुछ मिल गया। पहाड़ की महिला अब कुछ जागरूक हो गयी है। उसे लगता है कि नेता पांच साल करते-धरते कुछ नहीं हैं, ऐसे में चुनाव के वक्त ही कुछ उनसे वसूल लिया जाए।
एक दूसरा वर्ग भी है। वह भले ही बदहाली में जी रहा हो लेकिन उसे लगता है कि देश, धर्म और जाति बचाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। यदि वो देश के बारे में नहीं सोचेगा तो भारत कल ही फिर से गुलाम हो जाएगा। चुनाव के वक्त यह मनोभाव उसे वोट देने के लिए प्रेरित करता हैं कि वह व्यक्ति को नहीं, पार्टी विशेष को वोट देता है।
परिणाम, राम सिंह और उसके दोस्त एक-दो महीने के मजे के लिए जीवन भर की बेरोजगारी मोल ले लेते हैं। जब वोट की कीमत पैसा, लालच या समोसा-जलेबी होगी तो उसके परिणाम भी उतने ही घटिया होंगे। अच्छे उम्मीदवार की हार हो जाती है और बुरा उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है। उसके पास विकास का सीधा फार्मुला है। अपनी एक टीम तैयार करो, जो सरकारी जमीनों पर कब्जा कराए। विकास कार्यों में कमीशन खोरी करे, माफिया के साथ गठजोड़ करे और जमकर दलाली करो। जब हर वोट की कीमत देगा तो वसूलेगा भी।
विधायकी का सीधा से गणित है। 50 हजार वोट गुणा एक हजार यानी पांच करोड़। जब कोई नेता पांच करोड़ चुनाव पर खर्च करेगा तो वसूलेगा भी। इसलिए विधायक बनते ही वो निवेश की गयी रकम को वसूलने में जुट जाता है। उसकी प्राथमिकता क्षेत्र का विकास या जनता की खुशहाली नहीं होती, वह चाहता है कि जल्द से जल्द चुनाव पर खर्च की गयी रकम को वसूल लूं। इस प्रक्रिया में एक-दो साल निकल जाते हैं। अब उसे दूसरे चुनाव की चिन्ता सताती है कि फिर वोट खरीदने हैं तो पांच -सात करोड़ और चाहिए। अब बताओ, बेचारे विधायक के पास विकास कार्यों के लिए समय ही कहां है? सीधी सी बात वह इस रकम को जनता की जेब से, विकास कार्यों की कमीशनखोरी से, प्रदेश की संपत्तियों की दलाली से, माफिया के साथ गठजोड़ से ही जुटाएगा।
ऐसे में जब नेताजी सत्ता में होंगे तो राम सिंह की मेहनत उसे नजर नहीं आएगी न उसकी मां की चिन्ता का अर्थ समझ में आएगा। संविदा पर 10 हजार की नौकरी के लिए भी रामसिंह से 20 हजार की रिश्वत लेगा और तब भी नौकरी की भी गारंटी नहीं। यानी राम सिंह के पिता का मेहनत का पैसा भी हड़पने के 90 प्रतिशत चांस हैं। दीदी-भुलियों को दी गयी साड़ी या सिलाई मशीन के बदले में वह उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और विकास से दूर रखेगा ताकि फिर से पांच साल बाद चंद रुपल्ली की साड़ी, मशीन या जलेबी खिलाकर ही वोट हथिया ले।
विडम्बना है कि उत्तराखंड जैसे साक्षर प्रदेश में अनपढ़ नेता हम पर राज कर रहे हैं। वो पिछले 20 साल में सड़क पति से खरबपति बन गये हैं और प्रदेश को कंगाली के हाल में खड़ा कर दिया है। जरा सोचिए, आप किसे वोट दे रहे हैं? सवाल कीजिए और जागरूक बनिए। आपका वोट कीमती है। वोट की कीमत समझेंगे तो नेता आपको समझेगा नही ंतो लाखों राम सिंह बेरोजगार ही रहेंगे और चुनाव दर चुनाव का इंतजार करेंगे। जागो पहाड़ियो, जागो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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