इगास पर क्यों है मलेथा की धरती उदास?

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  • वीरभड़ माधो सिंह भंडारी के सपनों को कथित विकास ने कुचल डाला
  • मलेथा की कूल पर बना सूअरबाड़ा, लालची ग्रामीणों ने बेच डाली जमीन

आज इगास है। इगास-बगवाल वीरभड़ माधो सिंह भंडारी के युद्ध में जीत कर वापस लौटने पर मनाई जाती है। सरकार ने जिस इगास-बग्वाल पर यह छुट्टी घोषित की है, वह वोट हथियाने की राजनीति भर है। यदि सरकार को अपनी संस्कृति, परम्परा और विरासत की जरा भी चिन्ता होती तो सरकार वीर माधो सिंह भंडारी के गांव मलेथा को बदहाल नहीं करती। मलेथा के लालची और स्वार्थी ग्रामीणों ने वीर माधो सिंह भंडारी की उस वीर धरा को चांदी के चंद सिक्कों के लिए बेच डाला, जिस धरा को सींचने के लिए वीर माधो ने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी थी।
अलग राज्य बना तो सरकारों को चाहिए था कि वीर माधो सिंह भंडारी के गांव मलेथा और वहां की कूल को राज्य विरासत घोषित करती। ऐसा नहीं हुआ। आज मलेथा की कूल के पास सूअरबाड़ा है और जिस धरती को सींचने के लिए वीरभड़ ने अपने मासूम बेटे की कुर्बानी दी वह धरती अब रोजाना रेल की धड़क-धड़क से कांपेंगी। सरकार ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन का मुख्य स्टेशन मलेथा की उपजाऊ भूमि पर बनाया है। यहां रेल गार्ड, क्वार्टर, शंटिंग और रेलवे आवास बनाए जा रहे हैं। इस स्टेशन को दो सुरंगों से जोड़ा गया है। ग्रामीणों ने पैसों के लालच और अपने बेरोजगार बच्चों को रेलवे में नौकरी के स्वार्थ में वीरभड़ माधो सिंह भंडारी के सपनों की हत्या कर दी।
विरासत की इतनी बड़ी हत्या हुई और कोई शोर नहीं हुआ? आज सरकार वोट के लिए इगास की छुट्टी दे रही है और हम खुशी से नाच रहे हैं लेकिन मलेथा की धरती तो उदास है। उसके बेटे वीर माधो सिंह भंडारी का त्याग और बेटे का बलिदान व्यर्थ गया? आखिर हम कब समझेंगे कि क्या सही है और क्या गलत? आखिर कब गलत के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे?
छोड़ो! मनाओ इगास बग्वाल, हमारी अपनी कोई सोच नहीं है, हम अनपढ़ नेताओं के इशारों पर नाचते हैं और दलों के दल-दल में आकंठ डूबे हुए हैं।
इगास की शुभकामनाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

आओ, मनाएं इगास, खेलो भैला

 

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