करगिल विजय दिवस, शहीदों के परिजनों की सुध भी ले सरकार

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आज करगिल विजय दिवस है। कृतज्ञ राष्ट्र देश के उन रणबांकुरों को याद कर रहा है जिन्होंने देश रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। हमारे गांव के एक युवा 10वीं गढ़वाल राइफल्स के जवान बलवीर सिंह नेगी ने भी देश के लिए शहादत दी। 14 मार्च 1976 को जन्में बलवीर नेगी 1995 में गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुआ। बड़ा भाई सुरेंद्र नेगी भी गढ़वाल राइफल में ही है। बलवीर नेगी का विवाह 22 जनवरी 1999 को हुआ और इसके बाद वह युद्ध के मोर्चे पर करगिल में तैनात हो गया। 10 मई 1999 को करगिल में इस वीर सपूत ने अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दिया।
बलवीर की शहादत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बलवीर की नई शादी थी तो बहू ने दूसरी शादी कर ली लेकिन मां-बाप का क्या? उनकी कौन सुध लेता है? बलवीर नेगी के पिता का निधन किस तरह से हुआ, लंबी कहानी है। मां गांव में है। सरकार शहीदों के परिजनों विशेषकर मां-बाप के साथ रस्म अदायगी भी नहीं करती है। यदि पत्नी का हक है तो मां-पिता का हक भी बेटे पर कमतर नहीं है। हालांकि सरकार ने अब मां-बाप के लिए कुछ प्रतिशत का प्रावधान किया है। लेकिन सच यही है कि करगिल शहीदों के मां-बाप उपेक्षित ही रहे। कई मां-बाप को शहीदों की पत्नियों ने घर से निकाल दिया तो कई की जमीन पर कब्जे हो गये। कई आज भी न्याय के लिए तरस रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। सोल्जर बोर्ड सफेद हाथी हैं। अब अग्निवीर की प्रथा होगी, पता नहीं क्या होगा?
देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सपूतों को भावभीनी श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

जब एक मुट्ठी घास पर भी हमारा हक नहीं, तो बताओ, हमारा हक कहां है?

 

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