बड़े दिल वाला मोहम्मद असीम

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  • धर्म से कहीं अधिक बड़ी होती है इंसानियत
  • बीमार लोक कलाकार महेश गंधर्व की मदद

मार्च महीने में मैंने दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती लोक कलाकार महेश गंधर्व के महीनों से बीमार होने की एक पोस्ट लिखी थी। महेश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। मेरे कई फेसबुक मित्रों ने उनकी मदद की। इनमें से एक मित्र हैं मोहम्मद असीम। मोहम्मद असीम देहरादून के रहने वाले हैं और सउदी अरब में नौकरी करते हैं। उन्होंने जब यह पोस्ट पढ़ी तो मुझसे महेश गंधर्व की एकाउंट डिटेल मांगी। मैंने भेज दी। एक सप्ताह पहले उनका मैसेज आ गया कि 5000 रुपये उस एकाउंट में ट्रांसफर कर दिये।
मोहम्मद असीम ने यह पहली बार नहीं किया। कोरोना के टाइम में उसने कई जरूरतमंदों की मदद की है। सामाजिक गतिविधियों में भी वह अपना योगदान देता है। महेश को दी गयी मदद का संभवतः मैं इस तरह उल्लेख करता भी नहीं लेकिन मैंने कल वरिष्ठ पत्रकार चारू दा की पोस्ट पढ़ी कि काशीपुर में इलाज के दौरान लोक कलाकार हरीश डोर्बी का निधन हो गया। उनकी आर्थिक हालत बहुत खराब थी और इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे। इसी तरह से चमोली के लोक कलाकार रामलाल भी बीमार हैं और उनकी आर्थिक हालात ठीक नहीं। सरकार कुछ करती नहीं और समाज में जिंदा लोग हैं ही कितने। जो हैं, वह खुद आर्थिक तौर पर कमजोर हैं। चाहकर भी मदद नहीं कर पाते। लेकिन यदि हम छोटी-छोटी मदद ही कर दे तो कई लोगों की जान बच सकती है।
पोस्ट लिखने का अर्थ यह है कि महज हिन्दु-मुस्लिम करने से समाज आगे नहीं बढ़ेगा। दुश्मनी ही बढ़ेगी। मोहम्मद असीम जैसे लोग भी हमारे समाज के अंग हैं जो जरूरतमंदों को धर्म के चश्मे से नहीं देखते। धर्म से कहीं अधिक बड़ी चीज इंसानियत होती है। नेता हमें आपस में लड़ा कर सत्ता सुख भोगते हैं और जब मोहन गंधर्व, रामलाल या हरीश डोर्बी के प्राण संकट में होते हैं तो कहीं नजर नहीं आते। जागो लोगों, समझो, समझो नेताओं की चाल। बड़े दिल वाला मोहम्मद असीम जैसे लोगों की कद्र करो। यह समाज के नगीने हैं। इन्हें सहेज कर रखो। मोहम्मद असीम की नेक सोच को सलाम।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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