उत्तराखंड में भाजपा नेतृत्व ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर अपना आखिरी दांव खेला है। तीरथ सिंह रावत को उपचुनाव न हो पाने के जिस कारण से हटाया गया है, पार्टी ने उसके लिए कोई प्रयास ही नहीं किया। पार्टी को आशंका थी कि कहीं तीरथ सिंह रावत उपचुनाव न हार जाएं। माना जा रहा है कि भाजपा के इस दांव से विपक्षी दलों का गणित कुछ गड़बड़ा सकता है।
भाजपा नेतृत्व में इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड को लेकर जो रणनीति बनाई थी, उसमें पार्टी के भीतर असंतोष और विरोध के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाना जरूरी समझा गया, लेकिन उनके विकल्प के तौर पर लाए गए तीरथ सिंह रावत उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे थे।
मई में जब पांच विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तब भाजपा ने एक बार फिर से अपनी भावी चुनावी तैयारियों की समीक्षा की। उस समीक्षा में उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन को जरूरी समझा गया और पार्टी ने नए नेता की तलाश शुरू कर दी। हालांकि, धामी को सरकार का अनुभव नहीं है, वह अभी तक मंत्री भी नहीं बने। अभी दूसरी बार के विधायक ही बने। धामी को आक्रामक तेवरों के लिए जाना जाता है और पार्टी को आने वाले चुनाव के दौरान ऐसे ही तेवर की जरूरत है।
सूत्रों के अनुसार, धामी के राजनीतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का राज्य में अपना एक अलग प्रभाव है और इसका लाभ भी धामी को मिला है। हालांकि, भाजपा के भीतर की गुटबाजी उनके लिए दिक्कतें पैदा कर सकती है। एक तो उनकी सरकार में उनसे वरिष्ठ मंत्री होंगे और दूसरा संगठन में भी काफी वरिष्ठ लोगों से उनको समन्वय बनाना पड़ेगा। ऐसे में उनको बार-बार केंद्रीय नेतृत्व की मदद की जरूरत पड़ सकती है।
सूत्रों के अनुसार, तीरथ सिंह रावत के तीन दिन के दिल्ली प्रवास के दौरान एक बार तो उपचुनाव का मन बना, लेकिन बाद में परिवर्तन का फैसला हुआ। पार्टी नेतृत्व को इस बात का भी डर था कि चुनाव के दौरान तीरथ सिंह रावत का कोई अटपटा बयान देकर नई मुसीबत न खड़ी कर दें। इसके पहले भी वह अपने बयानों से ज्यादा चर्चा में रहे।