…तो थम जाएगा पगडंड़ियों पर पीढ़ियों के मिलन और परम्परा का सफर?

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  • गांव में आशू भाई की यादगार शादी की खुशी और पहाड़ों से टूटते रिश्तों का गम
  • अब हमारे परिवार में शायद ही किसी की शादी पहाड़ में हो

20 जून 2021 हमारे परिवार के लिए दोहरी खुशियां लेकर आया। गढ़वाल राइफल्स से रिटायर्ड हुए मेरे सगे चाचाजी हीरामणी जखमोला के बेटे यानी मेरे भाई आशीष की शादी गांव में थी तो इसी दिन मेरे दूसरे सगे स्व. चाचाजी देवानंद जखमोला की बेटी सोनू की शादी गुड़गांव में थी। चाचा जी इंडियन नेवी में जेसीओ थे। आशीष एमएनसी में जूनियर इंजीनियर है तो सोनू एक बैंक में अधिकारी। कोरोना के कारण संयोग से दोनों शादी एक ही दिन तय थी लेकिन मैंने गांव जाना तय किया। कारण, सोनू और आशीष दोनों ही मेरी पीढ़ी के सबसे छोटे भाई-बहन हैं। इसके बाद हमारी नई पीढ़ी शादी के लिए तैयार होगी। संभवतः नई पीढ़ी अब पहाड़ में शादी नहीं करेगी। जब उसका गांव से नाता ही नहीं रहा तो भला शादी गांव में कैसे होगी?
आशु की शादी विशुद्ध पहाड़ी थी। 17 जून को डाली यानी शादी का निमंत्रण। इस दिन गुड़ से बने अरसे और दाल की पकोड़ियां बनाई जाती हैं। इनको परिजनों, रिश्तेदारों और ग्रामीणों को दिया जाता है। रात दो बजे से भीगे चावलों को सुखाने की तैयारी होने लगी। सुबह पांच बजे चक्की में इनको पीसा गया और फिर गुड़ को गलाकर अरसे तैयार किये गये। अरसे बनाना बहुत मुश्किल होता है। मेहनत के साथ हुनर भी चाहिए। थोड़ी सी गलती हुई कि सारी मेहनत पर पानी फिर जाती है। गांव के सयानों और अनुभवी लोगों ने अरसे तैयार किये। गांव की महिलाओं ने सिलबट्टे में दाल पीसी। इसके बाद अरसे और पकोड़ियां तैयार हो गयी। कोरोना के भय के कारण गांव और खास रिश्तेदारों को ही डाली दी गयी। सामूहिक भागीदारी की मिसाल गांव की शादी में ही देखने को मिलती है। यहां गांव के पुरुष अरसे, पूरी-पकोड़ियां और सब्जी बनाने का काम करते हैं जबकि महिलाएं दाल पीसने से लेकर रोटी बनाने का काम करती हैं। तीन दिन तक गांव में सामूहिक भोज होता है।
आशू की शादी में हम सब आरटीपीसीआर कर पहुंचे थे। दिल्ली और अन्य शहरों से आने वाले परिजन क्वांरटीन हुए। 18 को मैं चौबट्टाखाल तहसील में गया और शादी की अनुमति ली। 18 जून की रात को मेहंदी थी। दिन से ही बारिश शुरू हो गयी। पहाड़ की बारिश मैदानों से अलग होती है। स्प्रेड रेन। बादलों ने जो बरसना शुरू किया तो थमने का नाम नहीं लिया। बारिश से परेशानी तो हुई लेकिन मजा भी रहा। दिन रात अगले 40 घंटों तक बारिश होती रही। दिल्ली-एनसीआर में जून महीने की कल्पना कीजिए और फिर पहाड़ की जहां 18 जून को गरम कपड़े, शाॅल, स्वेटर और रजाइयां निकल आईं। ठंड से कांपते हाथों में मेहंदी लगाने का अंदाज ही निराला था।
– मेरे भाई की शादी की डाली का ये वीडियो सुन्नी भाई ने बनाया।
-हल्दी हाथ,न्यूतेर और शादी की कहानी अगले भाग में।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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