चम्पावत के लोगों, सावधान! सरकार धमक रही है…

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file photo
  • अब तक तो जहां भी उपचुनाव हुए, जनता बेहाल रही
  • पूर्व सीएम रहे खंडूड़ी, बहुगुणा, हरदा के क्षेत्रों की नहीं बदली तस्वीर!

धारचुला के विधायक धामी बहुत शोर मचा रहे थे, अब भीषण गर्मी में बर्फ से ठंडे हो गये। समझ में नहीं आया। महाशय, ने 14 में हरदा के लिए सीट खाली की थी। हरदा ने उपचुनाव जीत लिया और वहां के विकास की जो कहानी लिखी, उसका हिसाब किताब नहीं है। जनता फिर झांसे में आई और हरीश धामी जीत गये। क्या धारचुला की किस्मत बदली? विजय बहुगुणा ने सितारगंज से उपचुनाव लड़ा और इसके बाद उनके पुत्र सौरभ भी वहीं से दो बार चुनाव जीत चुके हैं। बहुगुणा के लिए सीट छोड़ने वाले किरन मंडल कहीं विलीन हो गये। सितारगंज की जनता आज भी वादो का झुनझुना बजा रही है।
विजय बहुगुणा ने सितारगंज उपचुनाव जीतने के लिए मूल निवास को हटा दिया और स्थायी निवास की व्यवस्था की। इससे प्रदेश के मूल निवासियों को आज भी खमियाजा भुगतना पड़ रहा है।
सबसे बुरा हाल हुआ जनरल खंडूड़ी के विधानसभा क्षेत्र धुमाकोट का। जनरल टीपीएस रावत ने यह सीट खाली कर अपने राजनीतिक जीवन पर कुल्हाड़ी मारी। जनरल खंडूड़ी वहां से उपचुनाव जीत गये लेकिन फिर धुमाकोट गये नहीं। धुमाकोट आज भी प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाकों में शामिल है। विडम्बना है कि उत्तराखंड को अधिकांश सीएम ऐसे मिले जो चुनाव लड़े ही नहीं। हरदा, विजय बहुगुणा और जनरल खंडूड़ी की तो अपनी कोई विधानसभा सीट रही नहीं। दूसरों की सीट कब्जाई।
चम्पावत के लोगों को इतिहास जानने की जरूरत है। अब उनकी बारी है। कैलाश गहतोड़ी का त्याग उनके कितने काम आएगा, यह तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि सावधान रहें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

बाकी सब मौज है, बस दिल में टीस उठती है, हम उनको क्यों भूले, जिनकी बदौलत राज्य मिला!

 

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