आरटीओ आफिस में सीएम की छापामारी महज खानापूर्ति

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  • यदि जांच हो तो आईएएस पूजा सिंघल से भी अधिक मिलेगी आरटीओ अफसरों की संपत्ति
  • चारों ओर दलालों से घिरा है देहरादून का आरटीओ आफिस

आज सुबह साढ़े दस बजे आरटीओ आफिस पहुंचा। तो सीएम का काफिला निकल रहा था। अब सीएम आएं हैं तो कुछ तो करेंगे। लिहाजा समय पर न आने पर आरटीओ को संस्पैड कर दिया। 80 प्रतिशत कर्मचारी अधिकारी आफिस नहीं आए थे। ये कोई बड़ी बात नहीं है और हर विभाग का यही हाल है।
अहम बात यह है आरटीओ में होता क्या है? और मैं सुबह-सुबह वहां गया क्यों था। बेटी का लाइसेंस बनवाना है तो स्लॉट के लिए गया। यहां आसानी से स्लॉट नहीं मिलता। इसके लिए आपको दलालों से मिलना पड़ता है। मैं दलाली देने का पक्षधर नहीं हूं तो मैंने एक सेटिंग वाले कैफे जो कि गोपाल भट्ट के नाम से है, की मदद ली। 80 रुपये स्लॉट बुकिंग के दिये, जो मुझे जायज लगे। क्योंकि स्लॉट बुकिंग एक बड़ी समस्या है। गोपाल भट्ट की कई दुकानें हैं। 80 रुपये सर्विंस चार्ज के बावजूद मुझे स्लॉट के लिए दो दिन चक्कर लगाने पड़े। यदि आरटीओ की बात होती तो ये कई चक्कर हो सकते थे।
आरटीओ में लर्निंग लाइसेंस के लिए आनलाइन अप्लाई करना है तो आसानी से स्लॉट नहीं मिलेगा। रोजाना पांच मिनट के लिए स्लॉट खुलते हैं और बंद हो जाते हैं। लेकिन दलालों के लिए 11 बजे तक स्लॉट उपलब्ध हैं। जब कई दिन सुबह सात बजे से नौ बजे तक लाइसेंस टेस्ट के लिए स्लॉट नहीं मिला तो मैं आरटीओ आफिस पहुंच गया। कोई इंजीनियर कुकरेती है जो पोर्टल पर स्लॉट खोलता है। जब उससे मिला तो उसने बताया कि आठ बजे खुलता है। लेकिन मैंने उसे तर्क दिया कि एक दिन सात बजे खुल गया था। एक दिन नौ बजे। लेकिन जब तक मैंने अप्लाई किया तो वह स्लॉट फुल हो गया। यानी कुछ गड़बड़झाला है।
खैर, डीएल एक छोटी सी बात है। दलाल स्लॉट बुक करने, नंबर प्लेट, आजकल चारधाम के लिए गाड़ियों की फिटनेस, कामर्शियल लाइसेंस समेत न जाने क्या क्या गोलमाल कर रहे हैं। सीएम धामी को दिनेश पिठोई आज ही नहीं मिले। लेकिन मैं वहां अपना और अपनी बेटी के लाइसेंस के लिए 20 बार गया परंतु दिनेश पिठोई मुझे एक बार भी नहीं मिले। मैं उनसे शिकायत करता भी तो कैसे?
आरटीओ देहरादून मोटी कमाई का अड्डा है। मैं यह नहीं कहता है कि वहां सभी बेईमान हैं, लेकिन वहां बहुत कुछ गड़बड़ है। सूत्र बताते हैं कि यहां की पोस्टिंग के लिए गाजियाबाद की तर्ज पर बोली लगती है। ऐसे में सीएम धामी ने महज हाजिरी रजिस्ट्रर ही जांचा तो कोई बड़ा काम नहीं किया। बड़ी बात होगी कि आरटीओ आफिस के अधिकारियों की संपत्ति की जांच हो और उनके और दलालों के बीच की सांठगांठ का खुलासा हो। जो कभी होगा नहीं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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