बेटा हो तो माहिम जैसा, लौटा रहा है पिता का कर्ज!

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  • पिता-पुत्र मिलकर खेल रहे क्रिकेट, बना रहे अपनी टीम
  • खेलो-खेलो, सब अपना-अपना भला करेंगे, एक दिन खुशहाल हो जाएगा प्रदेश

आजकल कभी-कभी मन हो रहा है कि सट्टा खेलूं। 49 रुपये में करोड़पति बनने का सपना देखना बुरी बात है क्या? वह भी जब देश के नामी सितारे और क्रिकेट के भगवान उकसा रहे हों। ऊपर से भयंकर बेरोजगारी। ऐसे में 49 रुपये में करोड़पति बनने का मौका। धौनी खेल बदलने को कह रहा है, सचिन म्युच्अल फंड में सब कुछ डुबाने वालों को समझा रहा है कि सब सही है। फोकस्ड रहो। अमिताभ और अक्षय गुटका खाने को कह रहे हैं। इनसे तो मैं प्रभावित हो ही रहा था कि तभी मैंने मुझे मेरे दो नायक मिल गये। पिता पीसी वर्मा और पुत्र माहिम वर्मा। दोनों अपनी टीम बना रहे हैं। पिता ने हीरा को जीरो पर आउट किया।
माहिम वर्मा ने शायद ही कभी बैट पकड़ा हो, लेकिन प्रदेश की ड्रीम टीम बना रहा है। पिता ने जो विरासत सौंपी, उसका पूरा लाभ उठा रहा है। साथ ही अब पिता का कर्ज भी उतार रहा है। माहिम एक ओर हमारे प्रदेश के होनहार खिलाड़ियों का भाग्यविधाता बना हुआ है तो दूसरी ओर उनके हिस्से का मोटा माल यानी 25 लाख अपने पिता के गोल्ड कप में लगा रहा है। उधर, पिथौरागढ़, चम्पावत, पौड़ी और चमोली के खिलाड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि पांच-दस हजार ही मिल जाते तो बैट-बॉल तो ले लेते।
सीएययू ने पिछले दो साल में ही 20 करोड़ से अधिक खर्च कर दिये लेकिन न प्रदेश में कहीं क्रिकेट का मैदान है और न ही प्रैक्टिसिंग पिच। माहिम ने भले ही सीएयू का सचिव होने का फर्ज ईमानदारी से नहीं निभाया हो लेकिन बेटा होने का कर्ज और फर्ज जरूर चुका रहा है।
उत्तराखंड का क्रिकेट भी यहां की राजनीति और नौकरशाही की तरह बाहरी हो गया। वर्मा ने बिष्ट को हिटविकेट कर आउट कर दिया। हीरा भरे बुढ़ापे में पहले चुनाव हारे और अब रही-सही …. भी हार गये। बुढ़ापे में गोल्ड कप से बाहर हो गये और 40 डिग्री तापमान में धरने पर बैठ गये। बैठो-बैठो। और पिता-पुत्र की जोड़ी, खेलो-खेलो। इस प्रदेश में कौन किसका भला कर रहा है। सब अपना -अपना भला करें तो एक दिन ये प्रदेश सचमुच खुशहाल हो जाएगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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