क्या बेलगाम मंत्री बढ़ा रहे धामी की मुश्किलें?

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  • सतपाल महाराज के ट्वीट ने भू-कानून की मांग भड़कायी
  • हरक सिंह रावत की 100 यूनिट बिजली फ्री की घोषणा बनी सरकार के गले की फांस

कपकोट में फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी ने भूमि खरीदी। इसके बाद वाजपेयी कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज से अल्मोड़ा में मिले। महाराज ने अपनी और वाजपेयी की तस्वीर और पोस्ट ट्वीट की, इसके बाद ट्विटर पर उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड करने लगा। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उठने लगी और यह मांग अब सड़क पर भी पहुंच गई। भाजपा सरकार ने पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए भू-कानून में कई बदलाव किये हैं। इसके तहत उद्योगों के नाम पहाड़ों की जमीनों को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। भू-कानून का मुद्दा धामी सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन गया है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप है कि उनकी सरकार में निवेश के नाम पर उत्तराखंड में जमीन खरीद के सख्त प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया था। अक्टूबर 2018 में रावत सरकार एक अध्यादेश लेकर आई जिसके तहत अगर आप उद्योग लगाने के लिए कृषि भूमि खरीदते हैं तो वो केवल सात दिनों में स्वतः ही गैर-कृषिक भूमि मान ली जाएगी। पहले कृषि भूमि को गैर-कृषि बनाने में काफी कड़े प्रावधान थे। इसके अलावा इन्होंने सीलिंग लिमिट से जुड़ी धारा 154 में भी बदलाव किया। धारा 154 के तहत कोई भी व्यक्ति 12.5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि नहीं खरीद सकता था, लेकिन अब 154 (2) के तहत औद्योगिक उद्देश्य के लिए अब कोई भी व्यक्ति कितनी भी जमीन खरीद सकता है।
उधर, हरक सिंह रावत ने ऊर्जा विभाग संभालते ही 100 यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा कर दी। अब यह डिसिजन सरकार की गले की फांस बन गया है। यह मुद्दा आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड आगमन को तूल दे गया। आम आदमी पार्टी ने हाथों हाथ यह मुद्दा लपक लिया और अरविंद केजरीवाल ने देहरादून में 300 यूनिट बिजली फ्री का वादा कर डाला। अब आप गांव-गांव अभियान चला रही है। जबकि भाजपा और उसके समर्थक फ्री बिजली-पानी का विरोध कर रहे थे। कहा जा रहा था कि उत्तराखंडी मेहनतकश हैं मुफ्तखोर नहीं। लेकिन हरक सिंह रावत का यह दाव उल्टा पड़ गया। अब भाजपा चाहते हुए भी आप की नि:शुल्क बिजली दिये जाने का विरोध नहीं कर पा रही है।
उधर, यशपाल आर्य ने परिवहन निगम का भट्टा बैठा दिया। 300 करोड़ की देनदारी झेल रहे निगम को 34 करोड़ का लालीपाॅप काम नहीं आएगा। रेखा आर्य समय-समय पर सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर देती है। एक सुबोध उनियाल ही हैं जो सरकार का बचाव कर रहे हैं, लेकिन कब तक? उनका यह तर्क जनता के गले नहीं उतर रहा है कि ग्रामीण बाहरी लोगों को अपनी जमीन को बेचे ही नहीं। यह बात सब जानते हैं कि यह रोक और सोच भू-कानून के बिना संभव नहीं है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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