गुणा पेटवाल: जीना इसी का नाम है

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  • गुणा वर्कशाप में पड़ी थी उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नींव
  • अपनी तरक्की के साथ सहयोगियों का जीवन संवार दिया

आज सुबह लगभग नौ बजे प्रख्यात न्यूरो सर्जन डा. महेश कुड़ियाल का फोन आया कि गुणा वर्कशाप के संस्थापक गुणानंद पेटवाल का निधन हो गया। उनके बेटे सुरेंद्र से बात हुई तो उन्होंने कहा कि पिता लगातार बीमार थे। सुबह जब हम उनके कमरे में गये तो वह हिल-डुल नहीं रहे थे। डा. महेश कुड़ियाल को बुलाया तो उन्होंने कहा कि पिता का निधन हो गया। गुणानंद पेटवाल 94 साल के थे। उनका अंतिम संस्कार आज हरिद्वार में किया गया।
अप्रैल माह में जब मैं उनसे मिला तो वह बीमार होने के बावजूद छड़ी के सहारे ड्राइंग रूम में आ गये। हंसते हुए बोले, यदि कोई किसी गैरेज में नौकरी के लिए जाता था तो वहां उनसे पूछा जाता था कि गुणा की पिटाई खाई? दरअसल, देहरादून में अधिकांश पुराने मोटर मैकेनिक गुणा के सिखाए हैं। पूरे देहरादून में गुणा वर्कशाप की तूती बोलती थी। गुणा के हाथों में जादू था। काम बेहद ही सधा हुआ था और कहा जाता है कि एक बार जो मोटर गुणा के हाथ से गुजर गयी, वह दोबारा मुश्किल से ही खराब होती थी। इसलिए टिहरी के महाराज से लेकर मेरठ के डीएम और कमिश्नर भी उनके यहां अपनी गाड़ियां ठीक करवाने भेजते थे। गुणा की खासियत रही कि उनका गैरेज और घर जीवन पर्यंत ग्रामीणों के लिए सराय सा बना रहा। सर्वोदयी और पर्यावरण मुहिम में भी उनका योगदान था।
गुणानंद पेटवाल टिहरी के जाखणीधार के पेटव गांव से थे। चौथी कक्षा पढ़ने के बाद 13 साल की उम्र में पैदल ही गांव से मसूरी होते हुए देहरादून पहुंचे। यहां कई तरह की नौकरियां की और फिर मैकेनिक बन गये। गुणा वर्कशाप का आज भी दून में नाम है। गुणा हेमवती नंदन बहुगुणा के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने अपने साथ काम करने वाले साथियों को भी करोड़पति बना दिया। उनको जमीन और व्यवसाय जमाने में मदद की। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के लिए उस दौर में जगह नहीं थी तो गुणा वर्कशाप पर ही पहाड़ की समस्याओं पर मंथन होता था।
काम के प्रति जुनून ऐसा कि अप्रैल माह तक जब तक गुणा थोड़ा ठीक थे, तो नियमित वर्कशाप जाते और कुछ समय वहां बिताते। जब मैंने उन्हें कहा कि उत्तरजन टुडे आपको सम्मानित करना चाहता है और पूर्व गढ़वाल कमिश्नर एसएस पांगती आपको सम्मानित करेंगे तो वह बहुत खुश हुए थे। उनके कमिश्नर पांगती के साथ बहुत अच्छे संबंध रहे और वह हाल के वर्षों में उनसे अक्सर मिलते थे। लेकिन समारोह के समय उनकी तबीयत ठीक नहीं थी तो उनके बेटे ने उनके लिए वह सम्मान हासिल किया। दरअसल, गुणा का जीवन बहुत सादा, संयमित था, लेकिन उनकी काम के प्रति निष्ठा और अपनी तरक्की के साथ अपने साथियों का भी विकास करना उनकी नीयति में शामिल था।
इस कर्मयोगी को सादर नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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