प्रजा को यूं ही मरना है, आप महलों से सोती रहें! आपकी जय हो!

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  • रानी साहिबा को जन्मदिन मुबारक हो
  • धर्म की अफीम चूसकर जनता सो नहीं हो रही होती, तो आप, ‘आप‘ न होती

आज सुबह टिहरी के विधायक किशोर उपाध्याय ने टिहरी की सांसद राज्य माला लक्ष्मीशाह के जन्मदिन की पोस्ट सोशल मीडिया पर लिखी और उनके शतायु होने की कामना की तो मुझे बहुत अखरा। मैंने तुरंत कमेंट में लिखा कि शतायु, जनता को मरवाना है क्या? अब शाम को मेरे एक साथी पत्रकार जितेंद्र अंथवाल ने सच्ची और अच्छी बात लिखी कि जनता मरती रहे, लेकिन टिहरी सांसद को को कभी भी अपनी जनता से मोह नहीं रहा। 19 अगस्त को सांसद मालालक्ष्मी के संसदीय क्षेत्र में भारी तबाही हुई है। कई लोग मलबे में अब तक जिंदा दफन हैं, कई बेघर हो गये। मलबे में बहे खिलौने और बच्चों की अन्य वस्तुएं यहां बर्बादी की दास्तां कह रही है। लेकिन सांसद को इससे क्या?
वह अच्छे से जानती है कि जनता भेड़ है। धर्म की अफीम चूस कर सो रही है। दोबारा जागेगी तो फिर धर्म और राष्ट्रवाद खतरे में है कहकर जनता उसे फिर चुन लेगी। टिहरी की शापित जनता पिछले 75 साल से इसी राजपरिवार के लोगों को अपना प्रतिनिधि चुन रही है। मैं टिहरी की जनता को शापित इसलिए कहता हूं कि जब टिहरी के राजा ने अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन के शव को भिलंगना में फेंक दिया तो जनता के मुंह से विरोध का एक स्वर नहीं निकला। श्रीदेव सुमन की आत्मा ने तब जनता को श्राप दिया होगा कि इसी राजपरिवार की दासता झेलो। राष्ट्रवादी भाजपा भी इसी परिवार के सदस्य को तो टिकट देती रही है। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद टिहरी राजघराने ने अलग सरकार बना ली थी। यदि सरदार पटेल का भय नहीं होता तो टिहरी की अंतरिम सरकार ही स्थायी सरकार बन जाती।
रानी साहिबा को बता दूं, यदि टिहरी के लोग धर्म की अफीम चूसकर सो नहीं रहे होते, तो आप, आप नहीं होती। खैर, जब जनता ही शापित है तो आपको क्या दोष दूं? रात का समय है। आप केक काटिए और पार्टी कीजिए, आपकी आपदा प्रभावित जनता रतजगा कर रही है कि मलबे में दबे उनके परिजनों के शव मिल जाएं ताकि वो उनका विधि-विधान से अंतिम संस्कार तो कर दें।
रानी साहिबा को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी जय हो!
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी, उत्तराखंड में यही चल रहा

 

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