सुलगते सवालों को हवा दे गया नाटक ‘टिंचरी माई‘

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डायरेक्टर वसुंधरा नेगी और टीम का भावपूर्ण मंचन
महेश की बांसुरी, वर्षा, सोनिया और राकेश के गायन ने मनमोहा

देहरादून के टाउन हाल में आज टिंचरी माई नाटक का भावपूर्ण मंचन किया गया। नाटक कई जगह धीमा रहा और कई अनवांटेड सीन भी जोड़ दिये जाने से कुछ लंबा हो गया, लेकिन कुल मिलाकर नाटक दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल रहा। टिंचरी माई की भूमिका में वसुंधरा का अभिनय दमदार रहा। छोटी दीपा के तौर पर उपासना का अभिनय भी सराहनीय रहा। उसके उलझे बाल, गती वाली धोती और मासूमियत ने दर्शकों का दिल जीता और कई बार हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। गणेश की भूमिका के साथ राकेश आर्य ने पूरा न्याय किया। शराबी चंद्रभान कुमार ने अपने अभिनय से लोगों का दिल जीता। नाटक में कई भावपूर्ण दृश्य थे जो दर्शकों विशेषकर महिलाओं की आंखों के कोर भिगो गये। मसलन दीपा का अनाथ होना और उसका विधवा होना।
नाटक सीमित संसाधनों के बावजूद प्रभाव छोड़ने में सफल रहा। गांव का चूल्हा, गंजेली, जंदेरी, हुक्का, महिलाओं की परम्परागत वेशभूषा भी आकर्षक थी। पार्श्व गायन में वर्षा ठाकुर की मधुर आवाज ने दिल जीता वहीं राकेश आर्य व सोनिया गैरोला के सुर भी भाये। बांसुरी की तान से महेश ने जबरदस्त तालियां बटोरी। तबले पर मनोज पांडे के हाथ सधे हुए थे। चूंकि टाउन हाल में लाइटिंग की दिक्कत है तो लाइट और साउंड की समस्या तो होनी थी। कई कलाकारों की आवाज श्रोताओं तक पहुंची ही नहीं। सूत्रधार किशुक गैरोला सुंदरता के साथ ही सधी आवाज में कथानक को आगे ले गयी, लेकिन अंदाज कुछ सुस्त सा रहा। वर्धन ठीक-ठाक था।
नाटक की सबसे अहम बात यह है कि नाटक आज की परिस्थितियों को लेकर सम-सामायिक बन गया। नाटक ने कई सवाल छोड़े, प्रदेश की शराब नीति, मौजूदा समय में धर्म की आड़ में चल रहा व्याभिचार, विभाजन की त्रासदी के समान हिन्दू-मुस्लिमों के बीच जहर बोने की कोशिश, जल-जंगल और जमीन के सवाल और किसी अनहोनी के लिए महिला को दोष देने की मनोवृत्ति शामिल है। साथ ही यह भी सवाल है कि जब समाज में चारों ओर निराशा का माहौल हो तो जागरूकता के लिए मातृशक्ति को ही आगे आना होगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

पहाड़ के गर्भ से निकले एक और टिंचरी माई-गौरा देवी

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