- कहा, उत्तराखंड नवनिर्माण का संकल्प होगा साकार
- क्या पहाड़ और मैदान के बीच समन्वय बना सकेगी आप?
कल देर रात फेसबुक पर कर्नल कोठियाल की एक पोस्ट देख रहा था। सितारगंज के शक्तिफार्म में ठाकुर दासी सरकार के साथ। इसे देखते ही राहुल गांधी की विदर्भ की कलावती की याद आ गयी। साथ ही पूर्व सीएम विजय बहुगुणा की भी। जिन्होंने इन गरीब लोगों के साथ उपहास किया। वादा किया, वोट बटोरे और फिर नोट बटोरने में व्यस्त हो गए। कलावती के जीवन में पिछले 10-12 साल से बहुत बदलाव आया है। क्या पता कर्नल के ठाकुरदासी सरकार के घर रखे कदम से उसकी भी दिन बहुर जाएं?
राहुल गांधी ने शायद 2008 में विदर्भ की कलावती के घर भोजन किया। इसके बाद कांग्रेस द्वारा कलावती की सुध ली गयी। वह पोस्टर वूमैन बन गयी थी। जब मैंने आखिरी बार कलावती के बारे में बीबीसी में पढ़ा था तो उसके पास छह एकड़ की भूमि थी और कपास की खेती कर रही थी। खपरैल का घर पक्का बन चुका था। लेकिन उसके बच्चों का क्या हुआ पता नहीं। शायद अच्छा ही हो रहा होगा।
अब बात ठाकुरदासी सरकार की। उसकी माली हालत देख कर ही पता चल रहा है कि वह भी कलावती से कम नहीं है। यानी दुखों और समस्याओं का अंबार है। कर्नल को खाना खिलाया है तो कर्नल को नमक का हक अदा करना होगा। जितना मैं कर्नल को जानता हूं, वह करेंगे भी। मुझे नहीं पता कि ठाकुरदासी सरकार के घर प्रेमपूर्वक खाने को शबरी वाली लुक दी गयी या नहीं। यदि नहीं तो कर्नल की मीडिया टीम की कमजोरी है। यदि ठाकुरदासी सरकार की इस खबर को मीडिया ठीक ढंग से उठाता तो संभव है कि ठाकुरदासी सरकार कलावती बन जाएं। यदि किसी के जीवन में बदलाव लाया जा सकता तो क्या बुरा है?
दरअसल, विदर्भ या मराठवाड़ा से अलग नहीं है उत्तराखंड के तराई के खेतिहर मजदूरों की व्यथा-कथा। यहां ठाकुरदासी सरकार जैसे लोग बस गए और इनके वोटों की बदौलत नेता सत्ता तक पहुंच गए। 2012 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो सीएम विजय बहुगुणा भी सितारगंज से चुनाव लड़ा। बंगाली वोटों की बदौलत जीते, लेकिन फिर इनसे किए वादों से मुकर गए। इनको भूमि का मालिकाना हक भी नहीं मिला न ही जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ कार्य किए। अब देखें ठाकुरदासी सरकार के जीवन में क्या बदलाव आता है?
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]