कफन में लिपटी पहाड़ की बेटी अंकिता, अपनी बेटियों को कैसे कहूं ‘हैप्पी डॉर्ट्स डे‘?

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  • भेड़ियों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गयी, अलविदा अंकिता

मैं दो बेटियों का पिता हूं। आज डॉटर्स डे यानी बालिका दिवस है। सुबह से ही बेटियों को इंतजार था कि मैं कुछ कहूंगा। कम से कम विश तो करूंगा। मैं चुपचाप बिना कुछ कहे, उनसे नजरें बचाकर फील्ड में चला गया। दोपहर लगभग चार बजे लंच के लिए घर लौटा, तो छोटी बेटी इति चहकते हुए पास आई, उसे उम्मीद थी कि कुछ न कुछ तो लाए ही होंगे। मसलन चाकलेट, पेस्ट्री या कुछ और। खाली हाथ देखा तो कुछ नहीं बोली, अपने कमरे में चली गयी। पत्नी बोली, उन्हें विश तो कर दो। मैं चुप रहा।
बेटियों को विश करने का मन नहीं था। बार-बार अंकिता का ध्यान आ रहा है। आंखों में उस मासूम की छवि तैर रही थी। श्रीनगर में सड़कों पर बैठे लोग घूम रहे थे। यही सोच रहा हूं कि जब अंकिता नहर में धकेल दी गयी होगी तो वह आखिरी वक्त क्या सोच रही होगी? मां-बाप, भाई का चेहरा तैर रहा होगा आंखों में। पूरी जिंदगी की रील घूम गयी होगी। गांव, स्कूल, पगडंडी और वह बस, जिसमें सवार होकर वह हत्यारों के रिजॉर्ट तक पहुंची होगी।
जब डूब रही होगी तो खूब चिल्लायी होगी, कोई उसे बचाने नहीं आया। नहर किनारे भेड़िये अट्हास कर रहे होंगे। बार-बार पानी में डूबते-उतरते उसका दम घुट रहा होगा। पानी में डूबते समय सांसों की डोर टूट रही होगी, तब कितना तड़पी होगी वह। डूबते समय पेट में खूब पानी गया होगा। प्राण त्यागते समय मुंह में गंगा जल डालने की परम्परा है ताकि शरीर शुद्ध हो सके और चिता में लिटाने से पहले शरीर को गंगा जल से नहलाते हैं ताकि आत्मा शुद्ध हो सके। लेकिन अंकिता का शरीर और आत्मा दोनों गंगा मैया की शरण में था। उसने तो कोई पाप नहीं किया, फिर गंगा मैया ने ऐसा क्यों किया? क्यों उसे अपने आगोश में ले लिया? वह तो पिता का हाथ बंटाना चाहती थी। परिवार को और मजबूत करना चाहती थी। और यह भी सच है कि एक बेटी ही अपने बाप को अच्छे से समझती है। तभी तो वह घर से दूर चली आई, पिता के सपनों को साकार करने, लेकिन जालिमों ने उसके सपनों को ही नहीं, उसको भी मार डाला।
हां, अंकिता गंगा मैया की बेटी थी। मैया ने उसे गोद में ले लिया। इस बेरहम समाज में घुट-घुट कर जीने से अच्छा है मर जाना। अंकिता समाज के भेड़ियों से लडते-लड़ते शहीद हुई है। उसकी शहादत को सलाम। कामना है कि अंकिता की शहादत व्यर्थ नहीं जाए। अंकिता ने अपना धर्म निभाया, अब बारी समाज की है।
दिन ढल रहा है। आज प्रदेश में घनघोर अंधेरा है। आशंकाओं और दुख के बादल उमड़ रहे हैं। मन बहुत उदास है। आसमान में बादल हैं और उनके बीच से सूर्य की कुछ किरणें मेरी टेबल पर पड़ रही हैं। उम्मीद है कि ऐसे ही रोशनी की किरण आसमां में छाये काले बादलों के बीच से निकलेगी और प्रदेश में उजाला फैल जाएगा तब अंकिता का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
अलविदा अंकिता। विनम्र श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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