चलो जोर लगाएं, एक कोशिश करें, रिश्तों पर 22 वर्षों से जमी धूल साफ करने की

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अंकिता मर्डर के बाद नींद में डूबा पहाड़ कुछ जाग उठा है। उसे लग रहा है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो हम अपने ही घरों में गुलाम और डरे-सहमे लोग बन जाएंगे। अंकिता शहीद है और उसकी शहादत बेकार नहीं जानी चाहिए। उसने बलिदान देकर हम पहाड़ियों की संवेदनाओं को झकझोरने का काम किया है।
इसी कड़ी में राज्य गठन के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले राज्य आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए कल सुबह से एक साइकिल मार्च निकाला जा रहा है। इसका आयोजन हस्तक्षेप संगठन कर रहा है। साइकिल मार्च 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि देगा। इसमें 20 शहरों के साइकिलिस्ट भाग लेंगे। उद्देश्य है प्रवासी उत्तराखंड़ियों को एकजुट-एकमुट करना। पहाड़ के रिश्तों पर जमी गहरी धूल को साफ करने के लिए संभवत यह साइकिल मार्च एक शुरुआत हो। इसी उम्मीद के साथ हो सके तो साइकिल मार्च में भाग लें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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