दून में हर दिन लगभग ढाई करोड़ की जमीन पर हो जाता है कब्जा

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  • 20 साल में दून की 18 हजार करोड़ की सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द
  • 540 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण, राज्य के कुल बजट का 40 प्रतिशत रकम हजम

एक आम आदमी 20 साल तक दिन-रात मेहनत कर मुश्किल से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता है। पेट्रोल के दाम दो रुपये बढ़ने और रसोई गैस के दस रुपये बढ़ने पर उसके माथे पर चिन्ता की लकीरें खिंच जाती है। लेकिन नेता एक ऐसी कौम है जो यदि पेट्रोल एक हजार रुपये लीटर हो जाए तो उसे फर्क नहीं पड़ता। कारण, वह दिन दूनी-रात चौगुने पैसा कमाता है। कमाई है दून की सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने के।
देहरादून में पिछले 20 साल के दौरान 540 हेक्टयर जमीन पर अतिक्रमण यानी कब्जा हुआ है। यह मैं नहीं कह रहा, सरकारी आंकड़े कह रहे हैं। वर्ष 2007-08 के सर्वे में अतिक्रमण का जो आंकड़ा 11 हजार को पार कर गया था, आज उसके 22 हजार तक पहुंचने का अनुमान है। नगर निगम की जमीनों पर कब्जे के 150 मामले अदालत में चल रहे हैं। इनकी पैरवी भी वकीलों को कम मानदेय होने की वजह से ठीक से नहीं हो पा रही है। यदि हाईकोर्ट संज्ञान नहीं लेती तो सड़कों पर भी कब्जे हो गये थे। हाईकोर्ट के आदेशों के बाद ही कुछ सड़कों से कब्जे हटाए गये, उसमें भी भेदभाव किया गया। बड़े मगरमच्छों को छेड़ा ही नहीं गया।
एक हेक्टेयर में लगभग 11 हजार वर्ग गज होते हैं। दून में औसतन एक गज की कीमत 40 हजार रुपये है। यानी लगभग चार करोड़ का एक हेक्टेयर। इस आधार पर देहरादून में अब तक 18 हजार करोड़ रुपये की जमीन खुर्द-बुर्द हो चुकी है। यानी औसतन ढाई करोड़ रुपये की जमीन हर दिन खुर्द-बुर्द हो जाती है।
साफ है जमीनों को ठिकाने लगाने के इस खेल में नेता, अफसर, दलाल और भूमाफिया के बीच गठजोड़ है। पार्षद से लेकर मंत्री तक इस खेल में शामिल हैं। दून में बिंदाल नदी लुप्त हो चुकी है। पूरी नदी खा गये हैं भूमाफिया। रिस्पना नदी पर भी काठबंगला से लेकर मोथुरावाला तक लगभग 20 हजार कब्जे हैं। मलिन बस्तियों की संख्या 150 तक पहुंच चुकी है। नेताओं को भूमि कब्जाने के दो लाभ मिलते हैं एक वह सरकारी जमीन से अंधाधुंध पैसे कमाते हैं तो दूसरी जिन लोगों को जमीन पर कब्जा कराते हैं, उनके वोट भी हासिल करते हैं। यही कारण है कि दून से सीलिंग हटा दी गयी। वार्डों की संख्या बढ़ा दी गयी और भू-कानून में बदलाव कर दिया गया। जब तक सशक्त भू-कानून नहीं होगा, जमीनों का खेल जारी रहेगा और नेता मालामाल होते रहेंगे।

नोट – इनपुट 30 जुलाई 2021 को दैनिक जागरण में प्रकाशित अंकुर अग्रवाल की रिपोर्ट से।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

नेता क्यों न सुनें जनता की आवाज?

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