नौकरी नहीं, उद्यमिता को चुने, उत्पादक बनें

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  • हाकिम और उसके हाकिम की मौज के दोषी तुम हो
  • प्रेमचंद, कुंजवाल भी तुम्हारे पैदा किये बुलबुले हैं

अगले एक-दो दिन में यूकेएसएसएससी का मुख्य प्यादा हाकिम भी जेल से बाहर आ जाएगा। हाकिम का पता कभी नहीं चलेगा। क्योंकि सरकार, पुलिस, माफिया और दलालों में गठजोड़ है। सरकार हाकिम की संपत्ति जब्त भी कर ले तो क्या फर्क पड़ेगा? उसने कौन से मेहनत से कमाई थी? दोबारा वैसे ही कमा लेगा। न नकल कानून बदलेगा और न ही पहाड़ियों की सोच। छोटी सी सरकारी नौकरी के लिए मरे जा रहे हैं। जबकि जानते हैं कि कुल बेरोजगार आबादी का महज 2 प्रतिशत युवा ही सरकारी नौकरी हासिल कर सकते हैं। सरकारी किसलिए? ठाट के लिए, सुरक्षित जीवन के लिए। माना कि सरकारी नौकरी वाले भगवान हैं, लेकिन भगवान भी तो मरते हैं। अजर-अमर तो कोई नहीं रहा। ऐसे में 15 लाख रुपये देकर क्लर्क की नौकरी ही तो पाओगे। क्लर्क का वेतन क्या होता है लगभग 30-40 हजार। प्लस रिश्वत का पैसा। नौकरी मिल भी गयी तो पहले दिन से ही यह ध्यान रहेगा कि 15 लाख खर्च किये हैं तो वापस कैसे कमाऊं। यही सोच भ्रष्टाचार को जन्म देती है। तो नेताओं और हाकिम को दोष किसलिए। असल दोषी तो वो लोग हैं जिन्होंने हाकिम को, प्रेमचंद या कुंजवाल को पैसे दिये।
अच्छा जरा आकलन कीजिए कि 15 लाख में क्या-क्या हो सकता है। छोटा सा स्टार्ट-अप तो हो ही सकता है। खुद के लिए भी और एक-दो अन्य लोगों के लिए। कल रात बल्लूपुर चौक पर था। वहां एक छोटी सी दुकान है मद्रासी डोसे की। डोसा लेने गया। 60 रुपये का डोसा है। वहां कुछ लोग स्टैंडिंग में खा रहे थे और कुछ पैक करा रहे थे। मैंने डोसा पैक कराने थे तो पैकिंग में मेरा नंबर 27वां था और उस समय रात के लगभग साढ़े बजे थे। यानी दस बजे तक 50 लोगों ने एक से चार डोसे पैक कराए होंगे। गणित में कमजोर हूं तो हिसाब लगा लीजिए। ईसी रोड पर भी ऐसे ही डोसा बेच रही एक महिला रोजाना दस हजार से अधिक कमाती होगी। सात आठ बच्चों को नौकरी भी दी है।
पथरीबाग चौक पर एक युवा बर्गर बेचता है। 20 रुपये का एक। इसमें दो टिक्की और एक पीस पनीर भी होता है। यह युवा रोजाना 200 से भी अधिक बर्गर बेच देता है। रेहड़ी पर फल-सब्जी वाला भी औसतन 800 से एक हजार कमाता है। हरिद्वार रोड पर अजबपुर के पास एक युवा फू्रट चाट बेचता है। 50 रुपये प्लेट। औसतन 100 प्लेट रोज बेचता होगा तो क्या कमाई होती होगी। राजपुर रोड पर राज प्लाजा के निकट रेहड़ी पर बंटी परांठे वाले की कमाई के बारे में आप सोच भी नहीं सकते।
मैं पीएम मोदी की तरह सलाह नहीं दे रहा कि पढ-लिखकर पकौड़े तलो। लेकिन मेरा यह कहना है कि पढ़ाई के साथ-साथ उद्यमिता की ओर भी सोचो। रिश्वत के 15 लाख से हासिल की हुई नौकरी से बेहतर है छोटा सा स्टार्ट-अप। इस स्टार्ट-अप और 15 लाख से कई बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा और आत्मा को सुकून भी।
बता दूं, सरकार कुछ नहीं करेगी, क्योंकि इसका रिमोट दिल्ली में है। प्रदेश सरकार दिल्ली की खैरात में चल रही है। इसलिए यहां का हर नेता दिल्ली का नौकर है। आका जो चाहेगा, उत्तराखंड में होगा। पिछले 22 साल से यही होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। भले ही उत्तराखंड दिल्ली को हवा, पानी और सांसें देता हो, लेकिन यहां के नेताओं की सांसें दिल्ली में गिरवीं हैं। पहाड़ के भाग्य का फैसला भी दिल्ली में होता है और सौदे भी दिल्ली में होते हैं। ठेके भी दिल्ली में दिये जाते हैं और सौदे भी दिल्ली में ही होते हैं। नेता इसलिए दिल्ली जाते हैं ताकि वहां हमारे जल, जंगल और जमीन के सौदे कर सकें। हमारी अधिकांश जनता नपुंसक और डरपोक है। उसमें विरोध की ताकत नहीं है। न मुखर हो सकती है, क्योंकि वह पढ़-लिख गयी है। उसे पता है कि कानून क्या होता है।
ऐसे में युवाओं को खुद ही स्किल्ड और प्रोफेशनल बनने की कोशिश करनी होगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो खुद भी नौकर ही रहेंगे और अपनी भावी पीढ़ी को भी नौकर ही बनाकर रखना होगा। आने वाले वक्त में गरीब और आम आदमी के बच्चे के लिए उच्च शिक्षा के अवसर और अधिक सीमित हो जाएंगे। अच्छे और सरकारी कालेजों में सीईयूटी के माध्यम से भर्ती होगी। ऐसे में गरीब का बच्चा या सरकारी स्कूल में पढ़ा बच्चा उस परीक्षा को पास नहीं कर पाएगा और निजी कालेजों में पढ़ने के लिए उसके पास पैसा नहीं होगा।
पहाड़ के युवाओं को मेरी सलाह है कि क्लर्क टाइप नौकरी के लिए अधिक न सोचें। स्किल्ड बने, उद्यमिता को चुने और उत्पादक बने।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

 

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