राजाजी का टाइगर ‘बंटी‘ कैंतुरा

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  • नौ रेंज और दर्जनों रिज का चप्पा-चप्पा छान मारा
  • साहेब की डयूटी में छूट जाते हैं बच्चों के जन्मदिन, त्योहार

एफआरआई के हरि सिंह आडोटोरियम में पंडित राजन मिश्र की याद में गत दिनों संगीत समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर देश के कई प्रख्यात संगीतज्ञों और शास्त्रीय गायकों ने भाग लिया। दूसरे दिन प्रख्यात मोहनवीणा वादक पं. विश्वमोहन भट्ट की प्रस्तुति थी। आडोटोरियम से कुछ देर के लिए बाहर निकला तो एक वनकर्मी रंगोली देखता मिला। गोरा-चिट्टा और आंखों पर चश्मा लगाए। नाम गौरव कैंतुरा, निक नेम ‘बंटी‘। बंटी राजाजी टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर साकेत बडोला का ड्राइवर है। बातें की, तो गौरव के जीवन संघर्ष की दास्तां सुन ली।
बंटी ने 2005 में वन विभाग में नौकरी ज्वाइन की। पिता स्व. कुंवर सिंह कैंतुरा का निधन हो गया तो मृत आश्रित के तौर पर नौकरी मिली। पिछले 17 साल में अनेकों डायरेक्टरों के साथ नौकरी की। सभी नौ रेंज का चप्पा-चप्पा छान मारा है। बंटी उन जगहों में भी पैदल घूमा है जिन जगहों पर वाहन नहीं जा सकता। उसके अंदर देखने और सीखने की ललक है। वह गर्व से बताता है कि उसने राजाजी में एक बार 35 हाथियों का झुंड देखा। राजाजी में 360 से भी अधिक हाथी हैं। दुर्लभ हाइना भी देखी और चीतल और गुरड़ की तो यहां भरमार है। बंटी दावे के साथ बताया है कि राजाजी में 150 से अधिक गुलदार हो सकते हैं।
बंटी का कहना है कि राजाजी टाइगर रिजर्व में लापता बाघिन वापस मिल गयी है वह अपनी अलग क्षेत्र बना रही है। संभवतः इसलिए कैमरे की नजर से बाहर हो गयी थी। उसके अनुसार अभी दो-तीन टाइगर और मोतीचूर रेंज में लाए जा रहे हैं। जबकि गंगा के दूसरी ओर लगभग 40 टाइगर हैं।
बंटी का जीवन संघर्ष बहुत गजब का है। पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था। दसवीं में फेल हो गया। तो चाउमिन की रेहड़ी लगा ली। होटल में बर्तन धोए। प्रतिभा इतनी कि ओएनजीसी क्लब से क्रिकेट भी खेला लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। फिल्मों का शौक लगा और बंटी बंबई जा पहुंचा। प्रख्यात फिल्म डायरेक्टर लीलाधर सांवत के साथ मिलकर आर्ट डायरेक्टर का काम सीखने लगा। दरअसल, लीलाधर सामंत मसूरी में फिल्म की शूटिंग करने आए थे तो बंटी वहां सीएनआई स्कूल के डांस ट्रूप का हिस्सा था। वह अच्छा डांसर था तो सामंत ने मुंबई आने का न्योता दिया। बंटी वहां पहुंच गया। लेकिन पिता के निधन के बाद पारिवारिक जिम्मेदारी आ गयी और वापस लौट आया।
बंटी वाहन चालक महासंघ का सचिव भी है। उसके अनुसार उसने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन हर बार निर्विरोध उसे चुन लिया जाता है। एक वाहन चालक की जिंदगी में कुछ भी निश्चित नहीं होता है। खासकर बड़े अफसरों के वाहन चालक को। लेकिन गौरव ने कभी डयूटी के साथ समझौता नहीं किया। उसका बेटा रुद्रांश आठवीं में और बेटी रिदिमा पांचवीं में पढ़ती है। दोनों बच्चों के जन्मदिन भी अक्सर छूट जाते हैं। कई रिश्तेदारों की शादी-समारोह में भी नहीं जा पाता। होली-दिवाली भी कई बार छूट जाते हैं। वह कहता है कि मैंने और मेरी पत्नी स्वाति ने इसे स्वीकार कर लिया है, नौकरी ही ऐसी है।
मैंने पूछा, मां क्या तुम्हारे साथ रहती है। वह हंसते हुए बोला, मैं मां के पास रहता हूं। हमारी कहां औकात की मां को अपने साथ रख सकें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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