न्याय के सिद्धांत के खिलाफ काम कर रही धामी सरकार

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  • तीन परीक्षाएं रद्द की, गुनाहगार बच निकले, बेगुनाह फंस गये
  • सात अन्य पर भी तलवार लटकी, यूकेएसएससी को भंग करना बेहतर

अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की नींव एक स्वस्थ चयन व्यवस्था के लिए की गयी थी। आयोग का प्रथम अध्यक्ष आरबीएस रावत जेल में है। मुझे लगता है कि आरबीएस रावत को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। उनका कर्तव्य था कि आयोग की नींव को मजबूत करते, उल्टे उन्होंने एक कमजोर संस्था को जन्म दिया। एक नौजवान आरबीएस रावत जो महज 23 साल की उम्र में फारेस्ट आफिसर बन गया था, जिसने अपने ज्ञान और ईमानदारी से वन विभाग में एक नई परम्परा को जन्म दिया, वही लाखों बच्चों के भविष्य के लिए कोढ़ बन गया। कारण जो भी रहा हो, असल दोषी आरबीएस रावत ही हैं। आयोग को हर हाल में भंग कर दिया जाना चाहिए।
यदि यही कार्य यूपीएससी के पहले चेयरमैन ने किया होता तो संभव था कि देश को इतने प्रशासनिक अधिकारी पारदर्शिता के साथ मिलते? कदापि नहीं। इसलिए आरबीएस रावत और भी गंभीर रूप से दोषी हैं। उधर, धामी की धाकड़ सरकार पहाड़ियों को मूर्ख बना रही है। एक समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कर रही है और पहाड़ के बच्चों के साथ ही न्याय नहीं मिल रहा है। जिन बच्चों ने पूरी ईमानदारी से भर्ती परीक्षाएं दीं और पास की। क्या गारंटी है कि वो दोबारा भी सलेक्ट हो जाएंगे? तैयारी में बड़ा वक्त लगता है और परीक्षा के वो तीन घंटे महत्वपूर्ण होते हैं कि अभ्यर्थी का दिमाग पूरी तरह से चले न चलें। चूक आयोग से हुई, भूल आयोग से हुई, दोषी आयोग है और सजा भुगतेंगे मेरिट में आए अभ्यर्थी।
गौरतलब है कि धामी सरकार ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर स्नातक स्तरीय परीक्षा, वन दरोगा और सचिवालय रक्षक भर्ती को रद्द कर दिया है। अब इन भर्तियों की मार्च 2023 में दोबारा से लिखित परीक्षा होगी। इसमें पूर्व में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों को मौका दिया जाएगा। नए अभ्यर्थियों को आवेदन करने का मौका नहीं मिलेगा। सात अन्य भर्तियों पर आयोग ने शासन से विधिक राय मांगी है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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