- भूखे पेट गांव-गांव जा कर बना रहा पहचान, संघर्ष ही है पहचान
- यदि हो सके तो यूकेडी के तथाकथित बड़े नेताओं को मोहित से सीख लेनी चाहिए
मोहित डिमरी युवा नेता है। मोहित ने अन्य युवाओं की तर्ज पर राजनीति में शार्टकट नहीं चुना। वह चाहता तो भाजपा और कांग्रेस किसी भी दल की सदस्यता लेकर राजनीति में आगे बढ़ सकता था। लेकिन उसने संघर्ष और कठिनाई का मार्ग चुना। यूकेडी को चुना, क्योंकि उसका मानना है कि वो सुबह कभी तो आएगी जब लोगों को एहसास होगा कि हम ही फैसला करेंगे कि क्या गलत है क्या सही दिल्ली नहीं। पिछले दो-तीन साल से वह रोज सुबह घर से निकल जाता है और गांव-गांव भटकता है। लोगों को जागरूक करता है कि दिल्ली के दल हमारा भला नहीं कर सकते।
बांगर में डाक्टर नहीं है। मोहित धरने पर। आल वेदर सडक का मुआवजा नहीं मिला। मोहित धरने पर। व्यापारियों को इंसाफ नहीं मिला। मोहित धरने पर। पश्चिमी भरदार में जलसंकट। मोहित धरने पर। विकास नहीं हो रहा मोहित डीएम कार्यालय में प्रदर्शन पर। किसी गरीब का आशियाना ढह गया मोहित मौके पर। किसी मरीज को इलाज की जरूरत हो तो मोहित हर मदद को तैयार।
सवाल यह नहीं है कि वह लोगों से वोट ही चाहता है या रातों रात जनता की नजरों में हीरो बनना चाहता है। हकीकत वह भी जानता है कि यह राह आग का दरिया है और उस पर चलकर जाना है। वह जानता है कि इतना करने से भी मतदाता बूथ पर जाकर ऐन वक्त बदल सकता है। इसके बावजूद उसका जुझारूपन और कुछ कर गुजरने की जिद अच्छी लगती है। वह किसी की पीडा को देखकर द्रवित हो जाता है। वह किसी को परेशान देख परेशान हो जाता है। मैं उसे कई बार लताडता हूं कि क्यों दूसरे के फटे में टांग दे रहा है लेकिन वो नहीं मानता है। उसके पास रोज नई मुसीबत होती है। पता नहीं कैसा है। पर जैसा भी है अपनी धुन का पक्का है।
हवा में तीर चलाने वाले यूकेडी के नेताओं को मुझे यह सलाह देने में कोई गुरेज नहीं है कि धरातल पर काम करो। पहचान जरूर बनेगी। यूं सोशल मीडिया पर यह कहना कि यूकेडी दल नहीं, दिल है, कर मजाक बनना ठीक नहीं। पहचान बनाने के लिए धरातल पर उतरना ही होगा। मोहित से कुछ सीखो यूकेडी वालो।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]