कर्नल अजय कोठियाल नायक से खलनायक क्यों?

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  • कैसी विडम्बना, हमें आदमी की पहचान और कद्र ही नहीं?
  • ऐसे तो प्रदेश का विकास कैसे होगा भला?

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर उत्तराखंड में अनेक सरकारी योजनाएं और सरकारी भवन हैं, लेकिन कितने लोग जानते हैं कि बैंक का एक छोटा सा कर्ज न चुकाने पर उनके घर पर कुर्की का नोटिस चस्पा दिया था। हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा उनकी मदद के लिए आगे आए तो नोटिस हटा। जब यही वीर चुनाव लड़ा तो जमानत जब्त हो गयी। मणिपुर में मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली शर्मिला इरोम हों या नर्मदा बचाओ की मेघा पाटेकर। जब बात राजनीति की हो तो सब अच्छे जमीन पर धूल फांकते नजर आते हैं। राजनीति में अच्छे लोगों की कद्र ही नहीं है।
कर्नल (रि.) अजय कोठियाल ने अपना जीवन देश को दिया। 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद लोकनिर्माण, एनडीआरएफ समेत सभी विभागों ने केदारनाथ जाने के लिए मार्ग बनाने से हाथ खड़े कर दिये थे। लोक निर्माण विभाग ने तो रामबाड़ा से केदारनाथ जाने के लिए रास्ता तैयार करने के लिए तीन साल का समय मांगा था। तब देवदूत बनकर आए थे कर्नल अजय कोठियाल। निम के प्रधानाचार्य के तौर पर उन्होंने इस कार्य का बीड़ा उठाया। चार माह में रास्ता तैयार कर लिया गया। केदारनाथ पुनर्निर्माण का कार्य हुआ। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केंद्र में चारधाम यात्रा तय समय पर ही शुरू हो गयी। असंभव कार्य संभव कर दिखाया। इसके बाद कर्नल हीरो बन गये।
कर्नल ने इसके बाद युवाओं को सेना में जाने की राह दिखाई। नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया। दस हजार से भी अधिक युवाओं को सेना में भेजा। उन्हें लगा कि यदि राजनीति में जाएंगे तो प्रदेश के लिए कुछ और बेहतर कर पाएंगे। सो, राजनीति में आ गये। दल कौन सा चुना यह मायने नहीं रखता। नीयत और लक्ष्य क्या है, यह मायने रखता है, लेकिन हमारे प्रदेश के लोगों को तो अपनों को स्पेस देने की आदत ही नहीं हैं। इस कारण हम पहले भी नौकर ही थे, आज भी नौकरी कर रहे हैं और आगे भी यही आसार हैं। हम स्वाभिमानी और ईमानदार हैं, पर स्वयं के लिए नहीं, दूसरों के लिए।
यही कारण है कि हमारे प्रदेश का बेड़ा गर्क हो रहा है।
कर्नल अजय कोठियाल को अपने ही लोगों का साथ नहीं मिला। पहले कहा गया कि दल खराब है। अब कहते हैं कि दल-बदलू है। खूब ट्रोल होते हैं। किसी ने उस व्यक्ति को समझा ही नहीं, राजनीतिक बंबडर में आईटी सेल ने उन्हें नायक से खलनायक बना दिया। यह ठीक है कि वह महत्वाकांक्षी हैं। जो फौजी अफसर महत्वाकांक्षी नहीं होगा वह तंबोला और गोल्फ खेल रहा है, पेंशन के मौज उड़ा रहा है। क्या हमने कर्नल कोठियाल को स्पेस दिया? उसको मौका दिया? जहां (केदारनाथ) मौका मिला, कर्नल ने अपने को साबित किया। बार्डर पर भी। राजनीति में मौका मिलेगा तो वह आदमी बेहतर प्रदर्शन करेगा। बुराई तलाशने पर तो भगवान में भी मिल जाती हैA
मैंने कर्नल अजय कोठियाल को बहुत नजदीक से जाना है। उनके द्वारा किये गये कार्यों और जीवन पर शोध किया है। भले ही उन पर हजार आरोप हों, हजार कमियां गिनाईं जाएं, लेकिन यह सच है कि कर्नल अजय कोठियाल एक कोहिनूर है। कोयले की खान में हीरा कितने भी समय दबा रहें, लेकिन उसकी चमक बरकरार रहेगी। सब दिन एक समान नहीं होते, वक्त बदलता है। उम्मीद है कि वक्त बदलेगा और इस कोहिनूर की परख होगी। तब लोगों को समझ में आएगा कि उन्होंने क्या खोया? कर्नल की सोच नेक है और इरादे बुलंद। उनके जन्मदिन पर उनके जीवन से इस बुरे बंवडर के बीत जाने की कामना। जन्मदिन की हार्दिक शुभकामना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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