जो लोग कहते हैं कि मैं नास्तिक हूं, उनके लिए यह कथा!

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महाभारत के युद्ध में कौरव सेना परास्त हो गयी। दुर्योधन गंभीर रूप से घायल था। वह पुकार रहा था कि कोई तो उसकी मदद करे। अश्वत्थामा मदद के लिए आया। दुर्योधन ने उसे कहा कि क्या वह उसके लिए पांच पांडवों के सिर ला सकता है? अश्वत्थामा ने कहा, हां। और वह पांडव शिविर की ओर चल दिया। पांचों पांडव युद्ध में जीत की खुशी मना रहे थे। उधर, अश्वत्थामा चुपचाप पांडव शिविर में घुस गया। एक शिविर में पंचाली के पांच अबोध पुत्र सो रहे थे। अश्वत्थामा ने पांचों के सिर काटे और पोटली में बंद कर घायल दुर्योधन के पास पहुंच गया। दुर्योधन ने जब पांच सिरों की पोटली देखी तो बहुत खुश हुआ। उसने कहा कि सबसे बड़ा सिर मांगा। उसने सोचा यह सिर भीम का है। जब अश्वत्थामा ने सबसे बड़ा सिर उसे दिया तो वह देख सहम गया। बहुत रोया, कहा, अश्वत्थामा तूने यह क्या किया? मैंने इन अबोध बच्चों के सिर थोड़ी मांगे थे?
उधर, द्रोपदी जब शिविर में गयी तो पांचों बच्चों का धड़ देखा तो जोर-जोर से रोने लगी। अर्जुन और अन्य पांडव आए। अर्जुन क्रोधित हो उठा और बोला कि द्रोपदी जिस भी धूर्त ने यह किया है उसे घसीट कर तेरे पास लाउंगा। श्रीकृष्ण रथ में अर्जुन को लेकर चलते हैं। उधर, अर्जुन से डरकर अश्वथामा भाग रहा होता है। अर्जुन उसे बालों से पकड़ लेता है और घसीटकर रथ में डाल देता है। द्रोपदी के पास पहुंचते हैं तो पूछते हैं कि इस दुष्ट का क्या करना है? द्रोपदी का हृदय एक मां का हृदय है। वह कहती है कि इसे छोड़ दो। इसके पिता की युद्ध में मौत हो चुकी है और यदि यह भी मारा गया तो इसकी मां किसके सहारे जीएगी।
यह कथा मैंने ऋषि विहार में अपने पत्रकार साथी अवधेश नौटियाल के घर पर चल रहे श्रीमद भागवत कथा के दौरान व्यास साहित्याचार्य रोशन डबराल से सुनी। यह ज्ञान यज्ञ अवधेश के पिता स्व. भगवती प्रसाद नौटियाल के वार्षिक श्राद्ध में किया जा रहा है। व्यास बहुत ही सुंदर तरीके से कथा बांच रहे हैं। बीच-बीच में भजन भी गाते हैं। ज्ञान यज्ञ का समापन 18 मार्च को पितृ प्रसाद के साथ होगा। मैंने देखा है अवधेश को। वह अपने पिता के प्रति कितना समर्पित था। हमारा जीवन सार्वजनिक है। अवधेश ने एक साल तक कभी बाहर का अन्न नहीं छुआ। वह प्रेस कांफ्रेंस में, होटलों में, शादी-समारोह में बिना बाहर का खाए रहा। यह त्याग उसकी अपने पिता के प्रति अगाध श्रद्धा, निष्ठा और प्रेम का परिचायक है। अवधेश की इस पितृभक्ति को सैल्यूट।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

तो मानसी से भी हाथ धो बैठेगा उत्तराखंड!

 

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