सच यही है हम अच्छे नौकर हैं!

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  • गढ़वाली नौकर मांग लिया तो क्या बुरा किया?
  • राज्य बना, हमने वाइट कॉलर बेरोजगार पैदा किये

एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने गढ़वाली नौकर क्या मांग लिया, हाय-तौबा हो रही है। सच स्वीकारना चाहिए। हमने राज्य हासिल किया और भाजपा और कांग्रेस के नौकर बन गये। उनके लिए ताली-थाली बजाते हैं। नीति-नियंताओं ने हमारी शिक्षा व्यवस्था में कोई भी बदलाव नहीं किया। न वानिकी, न आपदा, न बागवानी, न हस्तशिल्प। न स्किल्ड एजूकेशन और न हिमालय की समझ। शिक्षा वही लार्ड मैकाले की। क्लर्क बनो, सिपाही बनो या बीएड कर लो। इससे आगे की सोच पर हमारा दिमाग ठप हो जाता है।
हम इतिहास में एक अच्छे नौकर साबित हुए हैं और हो रहे हैं। हम पहाड़ी लोग हैं, हम पचड़े और जोखिम से बचते हैं। सेफ रहना चाहते हैं। हम सब्जी बेचने, पान का खोखा लगाने और रिक्शा चलाने में शर्म महसूस करते हैं लेकिन दूसरों के यहां माली गिरी, उनके किचन में खाना बनाना, दुकान में झाडू-पोछा करना ठीक समझते हैं।
देहरादून का पलटन बाजार हो, गंगोत्री या बदरीनाथ की दुकानें हों या हरिद्वार की हरकी पैड़ी। हर दुकान में हम नौकरी करते हैं। हमारी दुकान है ही नहीं। हम व्यवसायी हैं ही नहीं। हम कितने अच्छे नौकर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हम क्लर्क बनने के लिए रिश्वत में 15 से 25 लाख तक हाकिम को दे देते हैं जबकि होना यह चाहिए था कि इतनी राशि में तो एक नया स्टार्ट-अप हो सकता है। इसमें तीन-तीन लोगों को रोजगार भी मिल सकता है। लेकिन नहीं, हम अच्छे और ईमानदार नौकर हैं।
जब तक हमारी बेसिक एजूकेशन में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं होगा। हम अच्छे नौकर रहेंगे। ईमानदारी तो हमारे खून में है ही लेकिन बड़ी कमी यही है कि हम अन्याय का भी विरोध नहीं कर पाते। अपने साथ हुए अन्याय का भी। हम अपनी सोच नहीं बदल पा रहे हैं। नेता और अफसर इसी का लाभ उठा रहे हैं। सोच बदलेगी, तो स्वरोजगार पर ध्यान जाएगा। हम जोखिम लेंगे तो कामयाब होंगे। नहीं तो नौकर ही रहेंगे, विरोध करने से मालिक नहीं बनेंगे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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