‘गोदाम्बरी इंटरप्राइसेस‘: तीन पीढ़ियों की मेहनत ला रही रंग

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  • मंजिल की ओर बढ़ा एक और कदम
  • दूधली में हैंडलूम यूनिट विकारा की शुरुआत

कल दूधली गांव गया था। वहां विकारा हैंडलूम की शुरुआत हुई। इसकी जिम्मेदारी एक 23 साल की लड़की मानसी रांगड़ संभाल रही है। यहां धागा निर्माण से लेकर डिजाइनर कपड़े तक निर्माण की सभी प्रक्रिया होगी। यानी एंड प्रोडक्ट तक। यहां डीआईसी की अंजलि रावत, खादी ग्रामोद्योग की जिला अधिकारी अल्का पांडे, नेहा जोशी, पूर्व एक्सईएन डीसी नौटियाल समेत अनेक प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं। दरअसल, यह बेटियों और महिलाओं के सशक्त होने की एक कहानी है, जिसकी शुरुआत जोहड़ी गांव से हुई।
देहरादून के जोहड़ी गांव की 76 साल की सावित्री नौटियाल ने कोरोना काल में देखा कि गांव में आसपास के कई लोग वापस घर लौट आए। नौकरी न होने से उनकी पत्नी दुखी थी और अक्सर उनसे शिकायत करती थी कि घर कैसे चलेगा? गोदाम्बरी ने अपने बेटे सुशील से कहा कि इनके लिए कुछ करो। सुशील नौटियाल का एक दोस्त तुषार तांबे है। तुषार टैक्सटाइल इंजीनियर है। तय हुआ कि जोहड़ी में ही हैंडलूम कारखाना खुलेगा। सुशील ने अपनी मां के नाम से ही इसकी शुरुआत की। तुषार तांबे और उनकी टीम ने ग्रामीणों को चरखा चलाना, मशीन चलानी सिखाई और खादी के कपड़े, बैग, बेडशीट, टावल आदि बनने लगे। ये सभी उत्पाद प्रदूषण रहित हैं।
अहम बात यह है कि यहां 16 लोगों को काम मिला, जिसमें से 14 महिलाएं हैं। दूधली में भी तीन लड़कियों को ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। अथक मेहनत, समर्पण और कुछ कर गुजरने की तमन्ना के दो साल बाद ही गोदाम्बरी इंटरप्राइसेस ने ओएनजीसी पालीटेक्निक के साथ मिलकर भी एक यूनिट लगाई है और अब दूधली में यह तीसरी यूनिट है। सुशील नौटियाल के अनुसार विकासनगर में भी यूनिट शुरू करने पर विचार चल रहा है।
मानसी पहले स्किल नहीं थी, लेकिन वह एनसीडीसी से कौशल विकास का प्रशिक्षण ले रही है और अब इस कार्य में पूरी तरह से पारंगत है। उसका कहना है कि यहां मनुष्य के स्वास्थ्य के अनुरूप कपड़े तैयार किये जाएंगे और ये पूरी तरह से एनवायरनमेंट फ्रेंडली होंगे। उसके अनुसार यहां कपड़ों को फूलों से भी डाई किया जा रहा है।
गोदाम्बरी इंटरप्राइसेस के इस प्रयास से हमारे उन युवाओं को सबक लेना चाहिए जो 15 लाख रुपये नौकरी के लिए रिश्वत देने को तैयार हो जाते हैं। जबकि इतनी रकम में एक नई शुरूआत हो सकती है और कई अन्य लोगों को भी रोजगार मिल जाता है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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