WWF खेल रही सरकार, भुगतेगा पहाड़

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  • चारधाम में कैरिंग कैपिसिटी को लेकर बैकफुट पर सरकार
  • पहाड़ के हिस्से में आता है मात्र मल और प्रदूषण

धाकड़ धामी सरकार अपने को बाहुबली समझ रही है कि जो होगा देख लेंगे। इंद्रदेव क्रोधित होंगे या शिव का त्रिनेत्र खुला तो देख लेंगे। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ खली से मुकाबला समझ रही सरकार। ऐसे में कैरिंग कैपिसिटी भी खत्म कर दी। यानी जितने चाहो, उतने तीर्थयात्री पहुंचेंगे चारों धाम। हद है, न हमने 2013 केदारनाथ आपदा से सबक लिया और न ऋषिगंगा से। जोशीमठ को तो हम आपदा मानने से मना कर रहे हैं। यह यक्ष प्रश्न है कि आखिर जोशीमठ के जो मुट्ठी भर आपदा प्रभावित एक हजार परिवार हैं, उनको बसाने में ही क्यों धाकड़ और महाबलशाली धामी सरकार को पसीना आ रहा है।
इस हैंडसम सरकार को यह नजर क्यों नहीं आ रहा है कि हिमालय नहीं बचेगा तो भारत के सिर पर एल्मुनियम का पतीला नहीं रखा जा सकता। हिमालय खतरे में है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और मध्य हिमालय में सैकड़ों झीलें बन गयी हैं जो कभी भी फट सकती है। हाल में एक वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि कुमाऊं के हिमालय ही 77 झीलें बन चुकी हैं। एक चोराबाड़ी ग्लेशियर ने 2013 में तबाही मचा दी थी।
गंगोत्री और केदारनाथ संरक्षित जोन हैं। इको सिंसेटिव जोन होने के बावजूद हजारों वाहन गौरीकुंड, सोनप्रयाग और गंगोत्री तक पहुंचते हैं। इससे कार्बन उत्सर्जन होता है जो कि वहां के क्लाइमेट के लिए भी खतरनाक है। एक ओर उत्तराखंड में जी-20 की बात हो रही है तो दूसरी ओर कॉप समझौते की अनदेखी। यदि यही हाल रहा तो गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की स्पीड और बढ़ेगी। लेकिन सरकार को तो 2024 का आम चुनाव नजर आ रहा है। हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करना है।
चारधाम यात्रा कोई सैर-सपाटे की यात्रा नहीं है। पिछले साल 45 लाख तीर्थयात्री आए थे। दावे के साथ कहता हूं कि 45 लोगों ने भी दर्शनों के बाद चोरी-चकारी, पाप और भ्रष्टाचार से तौबा नहीं किया होगा। चारधाम मुक्ति का द्वार है, हनीमून पैकेज के लिए नहीं है। लेकिन यहां नवविवाहित भी आ रहे हैं और बच्चे भी। केदारनाथ और बदरीनाथ सेल्फी प्वाइंट बने हैं। सरकार ने क्या व्यवस्थाएं की हैं? पोल ऋषिकेश से कुछ आगे ही खुल जाती है। रॉफ्ट के कारण शिवपुरी में जाम। आगे पूरे यात्रा मार्ग पर न तो पार्किंग की सुविधा और न ही शौचालय की सुविधा।
मैं कई साल से चारधाम यात्रा का गवाह हूं। बंगाल, राजस्थान, बिहार और गुजरात के अधिकांश लोग अपने वाहन में आते हैं। उनके साथ ही गैस सिलेंडर, बर्तन और राशन होता है। वह खुद पकाते हैं और स्थानीय लोगों की दुकानों पर नहीं जाते। यात्रा मार्ग पर देख लेना। जगह-जगह ऐसे ही चूल्हे लगे होंगे और ये लोग सीधे गंगा में मल प्रवाहित करते हैं। केदारनाथ में यात्रा के दौरान कचरे का पहाड़ खड़ा हो जाता है। वहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी नहीं है। बदरीनाथ में होटलों के सीवेज अलकनंदा में गिरते हैं। कुल मिलाकर लाखों यात्रियों के आने का अर्थ इतना ही है कि पहाड़ के हिस्से में बचता है ढेर सारा प्रदूषण और तीर्थयात्रियों का मल।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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