मुकुल जमलोकी से सीखो, मंजिल पाने का जज्बा

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  • चार बार फोड़ दी सबसे कठिन यूपीएससी परीक्षा
  • इस बार यूपीएससी में हासिल की 161वीं रैंक

2016, 2018, 2019 और अब 2022। मूल रूप से रुद्रप्रयाग जिले के रविग्राम के मुकुल जमलोकी ने चार बार यूपीएससी फोड़ दी। विश्व की सबसे कठिनतम परीक्षाओं में से एक है यूपीएससी की परीक्षा। बस एक धुन है मंजिल तक पहुंचने की। मंजिल थोड़ी सी दूर रह गयी, लेकिन मुकुल के जज्बे, उनकी अथक मेहनत और लक्ष्य साधने की जिद को सलाम। यह युवा कुछ अलग है, इसलिए खास है। इसमें आग है। आजकल के युवाओं को मुकुल से सीखना चाहिए कि जिंदगी की जंग कैसे लड़ें? मुकुल की पहली बार 609 रैंक, दूसरी बार 405, तीसरी बार 260वीं रैंक आई और इस बार 161वीं रैंक हासिल हुई। यानी हर बार सुधार किया। इस बार उन्हें आईपीएस या आईएफएस कैडर मिल सकता है, लेकिन लगता नहीं कि वह इसे लेंगे। मुकुल अभी कोलकत्ता में एजी पश्चिम बंगाल में सेवारत हैं।
देहरादून के ब्राइटलैंड स्कूल का छात्र रहे मुकुल ने दिल्ली से इंजीनियरिंग की और बंगलुरू नौकरी करने चले गये। नामी कंपनी एबीबी इंक में अच्छे पद और भारी-भरकम पैकेज पर काम कर रहे थे। मुकुल के मुताबिक नौकरी के दौरान उन्हें लगा कि यदि वह प्रशासनिक सेवा में जाएं तो प्रॉडक्ट की डिलीवरी यानी सेवा अच्छे ढंग से भी कर सकते हैं जबकि प्राइवेट में प्रोडक्ट की डिलीवरी का स्तर छोटा होता है।
इसके बाद इंजीनियर मुकुल ने सिविल सर्विस की तैयारी शुरू कर दी। इंजीनियर ने भारत और विश्व का इतिहास चाट डाला। वह मानते हैं कि यूपीएससी यानी गुड करियर आप्शन। सरकारी हिस्सा बनकर आपको समाज के लिए अच्छी सेवा की डिलिवरी करने का अवसर मिलता है।
मुकुल का लक्ष्य बड़ा है और इसे साधने के लिए उन्होंने कठिन मेहनत की है। अपने को साबित किया है। जीवन में बहुत कुछ है जो हम चाहते हैं, प्रयास भी करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वह पहली या दूसरी बार में ही हासिल हो। मुकुल मानते हैं कि प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी में यदि विफल हो गये हैं तो निराश न हों। प्रारंभिक परीक्षा में भाग्य भी काम करता है। कई बार एक-दो नंबर से ही मेरिट में आने से रह जाता है। इसलिए प्रयास जारी रहें।
मुकुल जमलोकी दूरदर्शन देहरादून में तैनात प्रख्यात वीडियो जर्नलिस्ट डा. ओमप्रकाश जमलोकी के पुत्र हैं। उनकी मां इंदु जमलोकी दिल्ली में शिक्षिका हैं। मुकुल को अथक मेहनत करने का हौसला, ईमानदारी से जीवन जीने के संस्कार अपने माता-पिता से मिले हैं। मुकुल जमलोकी की इस सफलता पर हम सबको गर्व है। मुकुल को उनकी एक और सफलता के लिए बधाई।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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