आओ, आओ, विजय बहुगुणा जी, आपके रिवर्स पलायन का स्वागत है

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  • देखो तो, आपने जो दलबदल का पौधा लगाया था वह अब पेड़ बन गया।
  • इतना तो पता ही होगा आपको, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय?

कल अपने पूर्व सीएम विजय बहुगुणा को देखा तो दिल गद्गद हो गया। ओह, प्रदेश में जैसे ईद का चांद निकल आया हो। कसम से, मजा आ गया। फटा पोस्टर निकला हीरो की तर्ज पर दलबदलुओं द्वारा भाजपा की नाव में छेद पर पैबंद लगाने के लिए इस महानायक को मैदान में उतारा गया है। ये भाजपा है, बच्चों से लेकर बूढ़ों का इस्तेमाल करना आता है पार्टी को। सो, देश के किसी कोने में धंसे और फंसे इस सिक्के को चलाने का फैसला किया और भेज दिया देवभूमि में।
कैसे हो विजय बहुगुणा जी। आप जब सीएम थे तो आपने पलायन नहीं रोका। सीएम पद से हटे तो खुद पलायन कर गये। कोरोना आया तो तीन लाख से अधिक प्रवासी अपने गांव लौट आए। लेकिन ये कमबख्त कोरोना भी आपका रिवर्स माइग्रेसन नहीं करा सका। आप नहीं लौटे। दिमाग कहता था आप नहीं आओगे, लेकिन दिल कहता, आओगे। लेकिन दिल तो दगाबाज होता है। कब धोखा दे दे, किसको क्या पता।
कहां थे आप बहुगुणा जी? प्रदेश में जब-जब आपदा आती है तो आप बहुत याद आते हैं। आपको पता है, जब आप नहीं थे और ऋषिगंगा से लेकर हाल में आई आपदा आई तो लोग आप बहुत याद कर रहे थे। आपने ही हम पहाड़ियों को बताया कि आपदा को अवसर कैसे बनाएं? स्कूटर की डिग्गी में 40 लीटर तेल कैसे डालें? जमीनों को खुर्द-बुर्द कैसे करें। देखो तो सही, आपने जो भूमि को खुर्द-बुर्द करने में तेजी दिखाई थी वो त्रिवेंद्र चचा ने परवान चढ़ा दी है। पहाड़ नीलाम हो रहा है और पहाड़ी बेघर।
अब भाजपा में पालीटिकल आपदा आई है। लोग कहते हैं कि आप दलबदलुओं के सरदार हैं तो भाजपा को आपकी याद आ गयी। आपकी निश्छल हंसी बता रही है कि बुढ़ापे में यदि किसी को कुछ काम मिल जाए तो उसे कितना अच्छा लगता है। देखो न बहुगुणा जी, आपने जो दलबदल और भ्रष्टाचार का जो पौधा लगाया था वह अब पेड़ बन चुका है। अब चुनावी पतझड़ का मौसम है, पत्तियां गिर रही हैं। हवा तेज होगी तो पत्तों के साथ शाख टूटने का भी खतरा है, इसलिए आप जैसे माली को बुलाया गया है। बचा लो पेड़, बचा सको तो। लेकिन याद रखना, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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