आखिर कौन सराहेगा छानू की लोक कला को?

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  • कोरवा के महासू मंदिर में एक दिन में चार बार बजाता है नमटी
  • प्रोत्साहन न मिलने से अगली पीढ़ी ढोल-दमाऊं बजाने को तैयार नहीं

आज मैं चकराता के निकटवर्ती गांव कोरवा में था। कोरवा के महासू मंदिर में लगभग 65 वर्षीय छानू मिला। छानू बाजगी है। वह गांव के महासू देवता के मंदिर में नमटी यानी ढोल बजाता है। वह रोज सुबह पांच बजे और रात लगभग दस बजे नमटी यानी ढोल बजाता है। इसी तरह से सुबह साढ़े ग्यारह बजे और शाम पांच बजे करीब महाराजा की पूजा के समय भी नमटी बजाता है। यानी एक दिन में चार बार। छानू को ढोल, दमाऊं, नगाडा समेत कई वाद्य बजाने आते हैं, वह पीढि़यों से गांव और मंदिर की सेवा करता है।
कोरवा गांव के 70 परिवार हैं। सभी मिलकर उसके परिवार को राशन और अन्य जरूरत पूरी करते हैं। साल में दो बार फसलाना के तौर पर हर घर से पांच-पांच किलो राशन छानू का मिलता है। गांव में चार बाजगी परिवार हैं। यानी हर परिवार को साल भर में तीन महीने नमटी बजाने की जिम्मेदारी मिलती है। इससे चारों परिवार पल रहे हैं। संपन्न लोग छानू की आर्थिक मदद भी करते हैं। लेकिन कमाई का जरिया न होने से अब छानू के बेटे लोक वाद्य के पेशे को नहीं अपनाना चाहते। छानू कहता है कि छोटे बेटे ने साफ इंकार कर दिया है और बड़ा बेटा मन मारकर सीख तो रहा है लेकिन उसकी रुचि भी इसमें नहीं है। छानू भी मानता है कि यदि लोककला को जीवित रखना है तो लोक कलाकारों को प्रोत्साहन देना होगा। कोरोना काल में शादी ब्याह न होने से उनकी स्थिति और खराब हो गयी है। कोरवा के पूर्व ग्राम प्रधान जयपाल सिंह भी मानते हैं कि लोककला को बचाने के लिए सरकार को प्रोत्साहन देना होगा।
पता नहीं, प्रदेश सरकार का लोक संस्कृति विभाग किसको और किन कलाकारों को पेंशन या सम्मान राशि दे रहा है। मेरे गांव के बाजगी वालों को भी यह प्रोत्साहन नहीं मिलता।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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